अकरकरा के फायदे और नुकसान। Akarkara Benefits and Side Effects in Hindi

                                             अकरकरा 

akarkara benifits in hindi
akarkara

नाम- 

संस्कृत-आकल्लक,आकारकरभ,अरकरभ,अकल्लक। हिन्दी- अकलकरा। गुजराती- अक्कलकरो। मराठी- अक्कलकारा। बंगाली- अकोरकोरो, तेलुगू- अक्करकरम। अरबी-- आकरकरहा। लेटिन-- angeyclaus, anacyclus pyrethrum अंग्रेजी-- pellitory root।

 वर्णन- 

यह अरब और भारत वर्ष के प्रसिद्ध बूटी है। पूर्व कालीन चरक वाग्भट आदि।‌ प्रमाणिक ग्रंथों में इस बुटीका उल्लेख नहीं मिलता मगर मध्यकालीन भाव प्रकाश और शार्ड्गधर आदि ग्रंथों में इसका उल्लेख पाया जाता है। इससे ऐसा अनुमान होता है कि भारतवर्ष में इस औषधि का ज्ञान युनानी हकीम ओं के द्वारा ही प्रचारित हुआ।
 यूनानी ग्रंथों में अकलकरे का वर्णन बाबूना वर्ग की 4 औषधियों के साथ मिलता है।  यह सब औषधियां एक दूसरे के साथ बहुत मिलती हुई है। बाबूना जरुमी, बाबूना बदबू, बाबूना गवचश्म और बाबूना स्पेनिश इन चारों औषधियों को यूनानी में बाबूना और लैट्रिन में  पाइरीथन कहते हैं।
भारतवर्ष में पैदा होने वाला  अकलकरा दो प्रकार का होता है पहले को लेटिन में ''Spilinthes Oleracea और दूसरे को "Spilanthes Acmella" कहते हैं।

akarkara uses
akarkara ka poudha

स्वरूप--

यह औषधि  क्षुप जाति की है वर्षा ऋतु की पहली वर्षा होते ही इस के छोटे-छोटे पौधे निकलना प्रारंभ होते हैं इसकी डाली रूएदार होतीती है
डाली के ऊपर गोल गुछेदार छतरी के आकार वाला पीले रंग का फूल आता है इसकी जड़ 2 से 4 इंच तक लंबी और आधे से 1 इंच तक मोटी होती है
 झाल मोटी भूरी और झुरीदार होती है यह औषधि 7 वर्ष तक खराब नहीं होती।

रासायनिक विश्लेषण-- 

 इस औषधि का रासायनिक विश्लेषण करने से पता चलता है कि इसमें अलकालाइड  अकरकर्मीन नामक चार तत्व, रेजिन और 2 स्थाई उड़नशील तेलों का
अस्तित्व पाया जाता है यह वस्तु प्रदाहजनक, लार निस्सारक, कामोत्तेजक, वात नाशक और मंजा तंतूओ को बल देने वाली है।

 गुण दोष-- 

आयुर्वेदिक मत-- आयुर्वेदिक मत से अकरकरा उष्ण वीर्य  मतलब गर्म प्रकृति की, बल कारक, चरपरा तथा सुजन, वात और जुकाम को नष्ट करने वाला है।

                                                   अकरकरा के फायदे--

स्नायु या लिगामेंट रोग--

ज्ञान तंतु के ऊपर इस औषधि का अच्छा असर होता है। जिसके फलस्वरूप यह औषधि लकवा, मुंह का लकवा इत्यादि।
स्नायुजाल से संबंध रखने वाली व्याधियों पर अच्छा लाभ पहुंचाती है। रूमी मस्तगी के साथ इस औषधि को चबाने से दूषित दोषो से पैदा हुई मिर्गी मिटती है।
इस औषधि में वात नाशक गुण भी काफी मात्रा में मौजूद है। जिसके परिणाम स्वरूप ग्रघ्रमी, संधिवात, शुन्यवात, वातजनित मस्तक रोग, पुठ्ठे का दर्द,
कुबडापन, गर्दन की अकड़न, जोड़ों के दर्द इत्यादि व्याधियों पर जैतून के तेल के साथ पीसकर मालिश करने से अच्छा लाभ पहुंचाती है।

 बुखार और जुकाम--

 इस औषधि में पसीना लाने का गुण भी है। जैतून के तेल के साथ इस को पकाकर मालिश करने से पसीना देखकर बुखार उतर जाता है।
 इसके गरम काढे को सीर पर लेप करने से और उसे तालू पर मलने से सर्दी और नजला दूर होता है।

दंत रोग-- 

दातों की व्याधियों पर भी अकरकरा बहुत लाभ पहुंचाती है। इसके कांढे को मुंह में रखने से हिलते हुए दांत मजबूत होते हैं।
 इसी प्रकार इसकी जड़ को सिरके में भिगोकर दांत के नीचे दबाने से दातों का दर्द नष्ट होता है। इसके चूर्ण को जीभ पर मलने से जीभ की जड़ता दूर होती है और तोतलापन मिलता है।

खांसी-- 

खांसी के ऊपर भी यह औषधि अच्छा फायदा करती है इसका क्वाथ बनाकर पिलाने से पुरानी सूखी खांसी मिटती है।
 इसी प्रकार इसके बारीक चूर्ण को सुघाने से नाक बंधजाने से पैदा हुआ स्वास्वरोध दूर होता है।

दस्त और पेट की व्याधि--

अमाशय के रोगों पर भी यह औषधि अपना असर दिखाती है इस औषधि के प्रयोग से बच्चों के दस्त, दांत निकलने के समय  उपद्रव, पेट का दर्द इत्यादि रोगों में फायदा होता है।
सोंठ के साथ इसके चूर्ण कि आपकी लेने से मंदाकिनी और अफारा मिटता है। जलोदर में भी इसका प्रयोग गुण दिखाता है। इसकी 14 रत्ती की खुराक
घोटकर कर देने से यह बलपूर्वक कफ को जुलाब के द्वारा निकाल देता है किसी उल्टी और दस्त औषधि को पीने से पहले यदि अकरकरा चबा लिया जाए
 तो उससे दवा पीने की अरुचि दूर हो जाती है इस औषधि के लेने से बच्चों और गायकों का कंठ स्वर सुरीला हो जाता है।

 वीर्य संबंधी रोग--

 अकरकरे के अंदर उत्तेजक गुण बहुत काफी प्रमाण में विद्यमान है। इसलिए आयुर्वेद के अंदर कामोत्तेजक औषधियों में यह बहुत प्रधान माना जाता है।
 यह औषधि भिन्न-भिन्न औषधियों के साथ देने से वीर्य वर्धक, कामोत्तेजक व स्तंभन में बहुत फायदा दिखलाती है। मगर इस औषधि का लाभ ठंडी प्रकृति वालों को ही अधिक मिलता है।
 इसी प्रकार इस के तेल को वाहो्पचार की तरह पुरुष इंद्रिय पर मालिश करने से यह काम शक्ति को प्रबल करता है।

 लकवा--

 लगने पर अकरकरा की जड़ का चूर्ण महुऐ के तेल में मिलाकर मालिश करने से लकवा में लाभ होता है।

सर्दी के कारण सिर दर्द--

सर्दी के कारण अगर सिर में दर्द उत्पन्न हो रहा हो तो अकरकरा की जड़ को दांतों के नीचे दबा कर रखने से आराम मिलता है।

 नपुंसकता--

 करकरा का बारीक चूर्ण शहद में मिलाकर पुरुष के लिंग पर लेप करके और उपर से रोजाना पान के पत्ते लपेटने से ढीलापन दूर होकर वीर्य बढ़ता है।

 बाजीकरण योग--

 अकरकरा, सफेद मूसली और अश्वगंधा सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें इसे 6 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम एक गिलास दूध के साथ नियमित  लेने से यह शरीर में ताकत की वृद्धि करता है।

बुद्धि वृद्धि--

 अकर्करा और ब्राह्मी समान मात्रा में लेकर बारिक चुर्ण बनाए और इसकी 6 ग्राम की मात्रा नियमित सेवन करने से बुद्धि तेज होती है।

मुंह से गंदी बदबू आना--

अकरकरा, माजूफल, नागरमोथा, भुनी हुई फिटकरी, काली मिर्च, सेंधा नमक सबको बराबर मिलाकर बारीक पीस लें इस मिश्रण से प्रतिदिन मंजन
करने से दांत और मसूड़ों के सभी विकार दूर होकर दुर्गंध बहुत जल्दी मिटती है।

सायटिका--

अकरकरा की जड़ को अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करने से सायटिका में लाभ होता है।

दाई का नुस्खा--

पुराने समय में गांव में जब बच्चा पैदा होता था तो दाई उसे अकरकरा की जड़ को कपड़े में बांधकर बच्चे के गले में पहनाती थी।
 इससे मिर्गी जैसे रोग और लकवा जैसी शिकायत कभी नहीं होती थी।

मासिक धर्म की अनियमितता--

अकरकरा का काढ़ा बनाकर पीने से मासिक धर्म समय पर होता है।

गर्भनिरोध--

अकरकरा को दूध में पिसकर रुई लगाकर तीन दिनों तक योनि में रखने से 1 महीने तक गर्भ नहीं ठहरता है।

मिर्गी नाशक सुंघनी--

अकलतरा 10 ग्राम, इंद्रायण की जड़ 6 ग्राम, नौसादर 6 ग्राम, शाह जीरा 6 ग्राम, कुटकी 10 ग्राम, कालीमिर्च 10 ग्राम इन सब औषधियों का चूर्ण प्रतिदिन सवेरे शाम सुंघने से संचित दोषों को दूर कर मिर्गी को नष्ट करता है।

अकर्करा वटी--

अकरकरा 4भाग, जायफल 3 भाग, 2 भाग दालचीनी, 3 भाग पीपला मूल, 2 भाग केसर. 2 भाग अफीम, भग 4भाग,  मुलेठी 4भाग, आंकड़े की छाल 5 भाग,
 वायबिडंग 3 भाग इन सब का चूर्ण करके उसमें 5 भाग शहद और शेष पानी मिलाकर घोटकर आधी रत्ती से लेकर ढाई रत्ती तक की गोलियां बनाई जाए
यह गोलियां बच्चों के दांत निकलते समय के उपद्रव, दस्त, पेट का दर्द और उल्टी के लिए हितकारी है।

रति वर्धक लेप--

 जायफल, मालकांगनी,  अकरकरा, भीमसेनी कपूर, जायपत्री लवंग यह सब एक-एक भाग और रेगमाही 5 भाग लेकर बारीक चूर्ण कर कपड़े में जान लिया जाए
 फिर उसमें बढ़िया गुलाब का इत्र एक भाग डालकर शीशी में भर लिया जाए फिर इसका इस्तेमाल कामोदिपन के लिए शहद के साथ पुरुष इंद्रि पर लेप किया जाता है।

syphilis नाशक गोली शुद्ध पारा 5 ग्राम खेर का चूर्ण 5 ग्राम अकरकरा का चूर्ण 5 ग्राम इन सबको कूट छानकर बनाई गोलियां जल के साथ लेने से उपदंश नष्ट होता है

अकरकरा का तेल--

60gm अकरकरा का  चूर्ण कर उसे दो  किलो पानी के साथ औटाना चाहिए जब चौथाई पानी शेष रह जाए तब उसे मल व छानकर ₹10
 भर शुद्ध काली तिल्ली के तेल में डालकर मंदाग्नि से उठाना चाहिए जब पानी का भाग जलकर तेल मात्र शेष रह जाए तब ठंडा कर शीशी में भर लेना चाहिए
 इस तेल के उपयोग से सभी प्रकार की सर्दी की खासियत दूर होती है।



अकरकरा से नुकसान--

योग्य मात्रा में देने से जहां यह औषधि अनेक प्रकार के दिव्य लाभ पहुंचाती है। वही अधिक मात्रा में देने से आंतों के श्लेष्मा आवरण में दाह उत्पन्न करके खूनी दस्त इत्यादि
उपद्रोव को पैदा करती है इसलिए इसका उचित प्रमाण मैं ही समझ बूझकर प्रयोग करना चाहिए। वही अकर्करा  का बाहरी प्रयोग अधिक मात्रा में करने से त्वचा का
 रंग लाल हो जाता है तथा उस पर जलन होती है यदि इसका सेवन आंतरिक रूप से अधिक किया गया हो तो इससे नाड़ी की गति बढ़ना दस्त लगना जी मिचलाना उल्टी आना बेहोशी थाना रक्तपित्त और दुष्प्रभाव पैदा हो जाते हैं फेफड़ों के लिए भी हानिकारक होता है क्योंकि इससे उनकी गति बढ़ जाती है।

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