अतिबला(कंघी)
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संस्कृत - अतिबला, बालिका, बल्या, शीतपुष्पा, वृष्गन्धिका।
हिंदी - कंघी, कंघनी, झम्पी।
गुजराती - कंसकी।
मराठी - मुद्रिका, करडी, चिकणायोरला
सिंधी - खपटी।
तमिल - पेरदूती।
तेलुगू - तूती।
अरबी - मस्तूल घौल।
उर्दू - कंघी।
अंग्रेजी - Indian Malow( इंडियन मेलो)
लेटिन - Abutilon Indicum
➽ पहचान
यह वनस्पति गर्म हवा वाले प्राय सभी प्रांतों में होती है। इसका वृक्ष कुछ पिसलता और रोएदार होता है। यह औषधि संस्कृत के प्रसिद्ध बलाचतुष्टय (बला, अतिबला, नागबला और महाबला) से एक है। और प्राय यह सब दूर परिचित है इसके बीज छोटे-छोटे लुआबदार, चिकने और कुछ काले होते हैं।
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atibala plant |
➽ गुण, दोष और प्रभाव
आयुर्वेदिक मत से कंघी - कड़वी, चरपरी और वात, किडे, जलन, तृषा, जहर, उल्टी और कलेद(पसीना) को शांत करने वाली है। यह वीर्यवर्धक, बलकारक, अवस्थास्थापक, वातपित्त नाशक और मूत्र रोगों को दूर करने वाली है।
इसकी छाल कड़वी बुखार निवारक, कृमि नाशक और जहर के दोष को दूर करने वाली है। इसके अतिरिक्त प्यास, त्रिदोष और वात पीड़ा को भी यह नष्ट करने वाली है। इसकी जड़ गर्भाशय से होने वाले रक्त स्राव में लाभदायक है। इस वृक्ष का दूध पेशाब संबंधी बीमारियों में लाभ पहुंचाता है। आयुर्वेद के अंदर बल बढ़ाने वाली, धातु पोस्टिक जितनी औषधियां मानी गई है उनमें यह औषधि अपना प्रधान स्थान रखती है।
इसके बीज पौष्टिक होते हैं और सीने की तकलीफों में लाभ पहुंचाते हैं। यह बच्चों की खांसी, वायु नालियों की जलन, बवासीर और सुजाक के अंदर बहुत कारगर है। इसके पत्ते दातों की पीड़ा, कमर की बादी और बवासीर में उत्तम है। इसकी छाल पथरी और पेशाब संबंधी बीमारियों में अपना अचूक असर दिखाती है, इसकी जड़ का ठंडा काढा बुखार के अंदर ठंडी औषधि के रूप में दिया जाता है। यह पथरी और मूत्र के अंदर रक्त के कण आने की बीमारी में भी लाभदायक है।
खूनी बवासीर के अंदर इसके पत्तों का काढ़ा दिया जाता है। इसके अतिरिक्त वायु नालियों के प्रदाह, सुजाक, मुत्राशय की जलन, दस्त और बुखार में भी इसका काढ़ा लाभदायक है।
इसके बीज अत्यंत पौष्टिक और कामोद्दीपक है। बवासीर के अंदर यह विवेचक औषधि के बतौर काम में लिए जाते हैं। खांसी के अंदर भी यह लाभदायक है। बच्चों के गुदाद्वार में जब कीड़े पड़ जाते हैं तब लकड़ी के अंगारे पर इसके बीजों को डालकर उनका दुआ देने से वे कृमि नष्ट हो जाते हैं।
इसके पत्तों को पानी में गलाने से एक प्रकार का चिकना लुआब निकलता है यह लुआब ज्वर में शांतिदायक, मूत्रस्निसारक, सीने के दर्द में लाभकारी तथा सुजाक और मूत्रनली की सूजन में लाभदायक माना गया है। इसके बीजों को अच्छी तरह पीसकर विवेचक और कफ निस्सारक, औषधि के तौर पर दिए जाते हैं। इसकी खुराक एक से दो ड्राप तक की है। इसकी छाल संकोचक और मूत्रल हैं। इसकी जड़ बुखार में फायदेमंद है।
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➽ उपयोग
बिद्रधि व्रण
बिद्रधि व्रण
अतिबला के कोमल पत्तियों को बारीक पीसकर लुगदी बनाकर फोड़े पर रखना चाहिए और उस पर कपड़े का तह रखकर उस पर ठंडा पानी डालते रहना चाहिए इस प्रयोग से गांठ में होने वाली जलन और भ्भका का बंद होता है और गांठ जल्दी पककर फूट जाती है।
गर्मी के चट्टो
अतिबाला की छाल और पुराने पत्तों को पीसकर उनको पानी में औटाना चाहिए और जब आठ भाग पानी रह जाए तब उससे गर्मी के चट्टो को धोने से लाभ होता है
बुखार
अति बला की जड़ और सौंठ का काढ़ा 10 से 20 मिलीग्राम पिलाने से शीत, कम्प और दाह युक्त बुखार दो-तीन दिन में जल्द नष्ट हो जाता है।
बुखार
अति बला की जड़ और सौंठ का काढ़ा 10 से 20 मिलीग्राम पिलाने से शीत, कम्प और दाह युक्त बुखार दो-तीन दिन में जल्द नष्ट हो जाता है।
बिच्छू का जहर
अतिबाला की जड़ को घिसकर लगाने से बिच्छू के जहर में लाभ होता है
मधुमेह
अति बला के पत्तों का चूर्ण करके 1 से 3 ग्राम की मात्रा में रोज खाने से मधुमेह में बहुत लाभ होता है
पथरी
अति बला के पत्ते और इसकी जड़ का काढ़ा बना ले इसका 30 ग्राम की मात्रा मे नित्य प्रयोग करने से पथरी पेशाब के रास्ते टूट कर बाहर आ जाती है
रक्त प्रदर
अति बला के जड़ का चूर्ण 1 से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर और इसमें बराबर शहद मिलाकर चाटने से रक्त प्रदर की समस्या खत्म हो जाती है
घांव
अतिबला के पत्ते या फिर फूल या फिर इसके काढे से घाव को धोने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है
अतिबला के पत्ते या फिर फूल या फिर इसके काढे से घाव को धोने से घाव बहुत जल्दी भर जाता है
पीलिया
अति बला की जड़ के चूर्ण या फिर काढे को पिलाने से पीलिए में बहुत आराम मिलता है
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➽ कायाकल्प योग
अतिबला के जड़ का चूर्ण 2 से 3 ग्राम की मात्रा में रोज सुबह शाम बराबर शहद मिलाकर दूध के साथ 1 वर्ष तक सेवन किया जाए तो ताकत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। शरीर कांतिमय और सुडोल बनता है, यादाश्त कई गुना बढ़ जाती है, कार्य करने में कभी भी थकान महसूस नहीं होती, उम्र भी कुछ समय के लिए वहीं ठहर जाती है, ज्यादा उम्र बीत जाने पर भी बाल सफेद नहीं होते, रोग प्रतिरोधक क्षमता निखर जाती है, मूत्रकच्छ जैसी समस्या फिर कभी नहीं होती, स्त्रियों की सफेद और रक्त प्रदर जैसी समस्या हमेशा के लिए नष्ट हो जाती हैं।
इस प्रयोग को स्त्री और पुरुष दोनों ही कर सकते हैं इसमें किसी बात का कोई भी संदेह नहीं है
अतिबला के इस्तेमाल के दौरान थोड़ा याद रखें कि इसके इस्तेमाल के कुछ देर बाद ताकतवर भोजन जरूर करें जैसे घी, दूध और घी की भात या फिर घी का हलवा
तली हुई चीजें, मिर्च मसाले व गर्म प्रकृति की चीजों से दूर रहे अन्यथा बताए हुए फायदे देखने को नहीं मिलेंगे।
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1 टिप्पणियाँ
hi dir
जवाब देंहटाएंधन्यवाद