दुधी के फायदे। Dudhi (Milk Hedge) Benifits in Hindi

बड़ी दूधी (नागार्जुनी)

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दूधी का पौधा

अन्य भाषाओं में दूधी के नाम
संस्कृत - नागार्जुनी, पयोवर्षा, योगिनी, दुग्धिका, दुग्धफेनी इत्यादि।
हिंदी - दूधी, लाल दूधी।
बंगाल - बरकेरू।
गुजराती - नागली दुधेली, राति दुघेली।
मराठी - नायरी।
तेलुगू - बिदारी, नानाबला।
तमिल - अ्मुपच्छे अ्रिस्सा।
लेटिन - Euphorbia Pillulifera
अंग्रेजी - Milk Hedge

दूधी की पहचान 
यहां 1 वर्ष जीवी क्षुप और रुऐदार वनस्पति है। इसका पौधा फुट भर तक ऊंचा होता है। इसकी डांडिया लाल रंग की रहती है। इसके पत्ते आमने-सामने लगते हैं। यह इंच भर लंबे और नौकदार होते हैं। पत्तों की जोड़ी के बीच में फलों के झुमके लगते हैं। इसके फल बाजरी के समान होते हैं। इसकी डाली को तोड़ने से उसमें से सफेद रंग का दूध निकलता है। यह वनस्पति तर जमीनों में 12 महीनों तक मिलती है। सब जगह नहीं। इसलिए इसको वर्षा ऋतु में इकट्ठे करके सुखा लेना चाहिए।

गुण-दोष और प्रभाव
आयुर्वेद के मत से दुधी मधुर, वीर्य वर्धक, रूखी, ग्राही, कड़वी, वातकारक, गर्वस्थापक, चरपरी, धातु वर्धक, हृदय को हितकारी, गरम पारे को बांधने वाली और प्रमैंह, कोढ तथा कृमि को दूर करने वाली है।

दूधी की क्रिया हृदय के अंदर जाने वाले एक विशेष मजा तंतु के ऊपर होती है। इस मंजा तन्तू का कुछ भाग फुफ्फुस में जाता है। वहां भी इसकी क्रिया होती है। इस मंजा तंत्र को फूफ्फुस-अमाशय-मज्जा तंतु कहते हैं। श्वासोच्छवास के केंद्र स्थान और हृदय के केंद्र स्थान पर दुधी की प्रत्यक्ष क्रिया होती है। दुधी का इन केंद्रों पर सामक प्रभाव होता है अर्थात इससे इनकी ज्ञान ग्राहक शक्ति कम हो जाती है। जिससे दमे के रोग में कमी हो जाती है।

ह्रदय- स्वास के अंदर यह एक उत्तम औषधि साबित हुई है। श्वास नलिका के संकोच-विकास की वजह से होने वाले समय में भी यह बहुत गुणकारी हैं। श्वास, सर्दी और जुकाम में भी यह दुधी अच्छा काम करती है। यह कहा जाता है कि किसी भी कारण से पैदा हुई श्वास, दमे में दूधी को देने से श्वास और दमे में होने वाली रुकावट और घबराहट में कमी हो जाती है।

इस वनस्पति की प्रधान उपयोगिता बच्चों के होने वाले कृमि रोग, आंतों के रोग और खांसी में मानी जाती है। कभी-कभी यह वनस्पति सुजाक के अंदर भी दी जाती है।
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अन्य प्रांतों में दूधी का प्रयोग

संथाल के लोग इसके पौधे को उल्टी रोकने के लिए देते हैं और जब किसी माता को दूध आना कम हो जाता है। तब इस पौधे के दूधिया रस का उपयोग करते हैं।

लारि में इस वनस्पति का संकोचक द्रव्य की तरह बहुत उपयोग किया जाता है। पुराने दस्त और प्रवाहिका रोग में यह दी जाती है। इसका दूध वहां पर होने वाले स्थानीय फोड़े फुंसी और सूजन पर लगाने के काम में लिया जाता है। इसका रह मुखक्षत में भी दिया जाता है या वनस्पति वहां पर पौष्टिक, नींद लाने वाली और दमे को नष्ट करने वाली मानी जाती है।

गोल्ड कास्ट में इसका सफेद रस स्त्रियों के दूध बढ़ाने के काम में दिया जाता है। इसके पत्तों का रस नेत्र रोगों को दूर करने के लिए भी उपयोगी माना जाता है।

नागपुर में होने वाली 18वीं इंडियन साइंस कांग्रेस में दीक्षित और कामेश्वर राव ने इस वनस्पति पर किए हुए अपने अनुभव बताए। उन्होंने कुत्ते, बिल्ली और खरगोश पर इस वनस्पति के प्रयोग करके यह अनुभव किया कि यह औषधि श्वासोच्छवास के अवयवों पर बहुत प्रभाव डालती है। यह श्वासोच्छवास की गति को धीमी करते हुए छोटी-छोटी स्वास नलीओं का विकास कर देती है। मगर यह लाभ इसकी छोटी मात्रा में ही होता है। अगर यह बड़ी मात्रा में दे दी जाए तो उससे रोगी का जी मिचलाता है और उल्टियां होती है। अगर प्राणियों की रक्त वाहिनी में इसको इंजेक्शन द्वारा पहुंचाया जाए तो यह आंतों की गति को बंद कर देती है कभी-कभी यह आंतों की स्वाभाविक गति को भी रोक देती है और उसके स्नायु मंडल को ढीला कर देती है। इसका इंजेक्शन देने से रक्त का दबाव भी कम पड़ जाता है। असल बात यह है कि अधिक मात्रा में यह हृदय की गति को बंद कर देती है। दूसरे अव्यवो पर इसका ज्यादा प्रभाव नहीं है।

सन 1884 मैं पश्चिमात्य डॉक्टरों ने इस वनस्पति का यूरोप में प्रचार किया इसके पंचांग का रेक्टिफाइड स्पिरिट में तैयार किया हुआ एक्स्ट्रेक्ट अभी भी वहां थोड़े बहुत प्रमाण में काम लिया जाता है। पेचिश, उदर शूल और बच्चों के कृमि रोग में भी यह बहुत उपयोगी मानी जाती है।

रासायनिक विश्लेषण
इसका रासायनिक विश्लेषण करने पर इसमें गैलिक एसिड, कसेंटिन, एक नवीन फिनेलिक तत्व, कुछ एसेंशियल ऑयल और कुछ अलकेलाइड का पता चला है।

इस औषधि का सत्त हृदय और श्वासोच्छवास की शक्ति को धीमी करके श्वास नलीओं को विकसित करता है। श्वासोच्छवास संबंधी बीमारियों में बिना पूर्ण निर्णय पर पहुंचे हुए इसका बहुत उपयोग किया जाता है। इसलिए इसका वंछित गुण दृष्टिगोचर नहीं होता।

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उपयोग

पुरुषार्थ वृद्धि - takat ke liye dudhi ka prayog
हरि दूधी को छाया में सुखाकर कूट छानकर शक्कर के साथ खाने से काम शक्ति बढ़ती है।

सर्प विष - saanp ke jahar ka ilaj
इसके 15 ग्राम पत्तों को पीसकर काली मिर्च मिलाकर खाने से सर्प विष में लाभ होता है।

कांटा चुभना - kanta chubhne ka ilaj
जिस जगह कांटा चुभ जाए उस जगह पर इसका लेप करने से कांटा निकल जाता है।

चेहरे के विकार - chehre ke daag dhabbe aur khilon ka ilaaj
इसका दूध दाग और मुंह पर होने वाली खिलो को दूर करने के लिए लगाया जाता है।

जलोदर - jalodar ka ilaj
इसके पंचांग का अर्क भभके से खींचकर जलोदर के रोगी को पानी की जगह पिलाया जाए तो बहुत फायदा होता है।

जबान का तोतलापन - totalepan ka ilaaj
इसकी जड़ को 2 ग्राम पान में रखकर चूसने से जबान का तोतलापन मिट जाता है।

सूजन - sujan ka ilaaj dudhi
इसका काढ़ा दमा और श्वास नलिका की पुरानी सूजन की दूर करने के लिए काम में लिया जाता है।

पथरी - pathri ka ilaj dudhi
गुर्दे और मसाने की पथरी में भी यह लाभदायक है।

चर्म रोग - charam rog ka ilaj dudhi
इसका रस लगाने से चर्म रोग नष्ट होते हैं।

खूनी दस्त और पेट दर्द - khooni dast main main dudhi ka prayog
रक्त मिश्रित आंव और उदरशूल में भी दूधी का रस देने से लाभ होता है

दुधी का रस पेट में जाने पर आमाशय में कुछ जलन पैदा होती है और जमाइईंया आने लगती है। आमाशय में जलन ना होने देने के लिए इसको हमेशा भोजन के पश्चात देना चाहिए और देने के पश्चात भर पेट पानी पीना चाहिए। इसका विषैला असर न होने देने के लिए इसको हमेशा थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेना चाहिए क्योंकि अधिक मात्रा में लेने से यह श्वासोच्छवास और हृदय की क्रिया को बंद कर देती है।

मात्रा दूधी के स्वरस की मात्रा 10 से 20 बुंद तक है और इसके चूर्ण की मात्रा आधे से 1 ग्राम तक है।