ढाक (पलाश) पेड कि पहचान ओर फायदे। Palash (Dhak) Tree Benifits In Hindi

ढाक (पलाश) / Dhak (Palash) Ka Ped

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ढाक (पलाश) के पेड की पहचान | Palash Ke Ped Ki Pahchan

ढाक या पलाश का पेड भारतवर्ष में बहुत प्राचीन काल से एक दिव्य औषधि की तरह काम में लिया जाता है। इसके पेड़ 5 से लेकर 20 फुट तक उच्च होते हैं। इसके पत्ते 3 3 के थोक में लगते हैं। इसके फूल की फली तोते की चोच की तरह निकलती है और खिलने पर लाल केसरिया रंग के सुंदर पत्रगंं की तरह दिखाई देती है। इसकी छाल आधे से 1 इंच मोटी और खुरदरी होती है। इस वृक्ष के ऊपर एक प्रकार का गोंद लगता है। जिसको कमरकस, चुनिया गोंद या पलाश का गोंद कहते हैं। इसके फूलों में से पीला रंग निकाला जाता है।

ढाक के एक जाति और होती है जो सफेद ढाक कहलाती है। इसके फूल सफेद आते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इसके संसर्ग से सोना बनाने की रसायनिक क्रिया होती है। इस के योग से बनाई हुई हड़ताल, शिंगरफ, और पारद की भस्मे विशेष उपयोगी होती है। ऐसा कहा जाता है कि इसके सफेद फूलों का कल्क साधु संत सेवन करते हैं। इसके प्रभाव से उनका हृदय मंज जाता है और वे त्रिकालदर्शी हो जाते है। गर्भावस्था में यदि स्त्री को इसका सेवन कराया जाए तो उसकी संतान बड़ी प्रभावशाली और बुद्धिमान होती है।

 इन सब बातों में सच्चाई का कितना अंश है यह कहा नहीं जा सकता।


ढाक के अन्य भाषाओं में नाम | Palash Ke Or Naam

संस्कृत - पलाश(Palash), किंशुक(Kinshuk), पर्ण याज्ञिक(Parn Yagyik), रक्तपुष्प(Raktapushpa), क्षारश्रेष्ट(charshresta), ब्रह्मवृक्ष(brahamvarksh), कमलाशन(Kamlasan), कृमिघ्न(karmigharh), वक्रपुष्पक(Vakrapushpak), सुपर्णी(suprni)।

हिंदी - ढाक(Dhak), टेशू(Teshu), केसू(Kesu), खाकरा(Khakra), पलाश(Palash)।

बंगाली - पलाश(Palash), गाछ(Gaach)।

मराठी - पलास(Palash)।

गुजराती - खाकरा(Khakra)।

तामिल - पलासू(Palasu), कटुमुसक(Katumusak), किंजुल(Kinjul), किरूमिस्तरू(KIrumistaru), पुंगु(pungu) इत्यादि।

तेलुगू - किंशुक(Kinsuk), पलाश(Palash), मातुकाटेटटु(Matukatettu), तेल मोदु(TelModu), इत्यादि।

उर्दू - पलास पापडा(Palash Papda)।

लेटिन - Butea Frondosa(ब्यूटिया फ्रांडोसा, B. Monosperma [ब्यूटिया मोनोस्परमा] ।


ढाक के गुण दोष और प्रभाव | Dhak ke Gun-Dosh

आयुर्वेदिक मत से ढाक अग्नि दीपक, वीर्य वर्धक, सारक, गरम, कसैला, चरपरा, कड़वा, स्निग्ध, टूटी हड्डी को जोड़ने वाला तथा संग्रहणी, बवासीर, कृर्मि, व्रण और गुल्म को हरने वाला है। इसके फूल स्वादुपाकी, कटु, तिक्त, कसैले, वातवर्धक, शीतल, मलरोधक और कफ, रक्तपित्त, मूत्रकच्छ, वात रक्त, कुष्ठ, तृषा और दाहा को दूर करने वाले होते हैं। पलाश की जड़ का स्वरस नेत्र रोग, रतौंधी और नेत्र की फूली को नष्ट करता है, यह नेत्र की ज्योति को बढ़ाता है। ढाक का गोंद संग्रहणी, मुख रोग, खासी और पसीने को दूर करता है। यह मल रोधक है।

👉  चरक और सुश्रुत के मतानुसार इसके बीज सर्पदंश के काम में उपयोगी होते हैं। इसकी कोमल शाखाओं की राख दूसरी वस्तुओं के साथ में बिच्छू के विष को दूर करती है।

👉  अन्सली के मतानुसार तमिल के वैद्य इसके बीजों को कृमि नाशक वस्तुओं के तौर पर काम में लेते हैं। वह इनको एक चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार देते हैं।

👉  के० एल० डे के मतानुसार इसके बीज विरेचक और कृमि नाशक है। इसका गोंद एक तेल संकोचक पदार्थ है। इसे पुराने खुनी दस्त में देने के काम में लेते हैं। इसकी मात्रा 5 से लेकर 20 ग्रेन तक की है।

👉  दत्त के मतानुसार इसके बीज आंतों के कीडो को नष्ट करते हैं। इसके फूल संकोचक, मुत्रल और कामोद्दीपक होते हैं। गर्भवती स्त्रियों के खुनी दस्त को दूर करने के लिए इन्हें दिया जाता है। इसके फूलों का पुल्टिस सूजन को दूर करने और मासिक धर्म को साफ करने के लिए बाहृ उपचार के काम में लेते हैं।



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ढाक (पलाश)  के फायदे | Dhak Palash Ke Fayde

✅  इसके पत्ते भुख पैदा करते हैं। फोड़े-फुंसी, बवासीर और पेट के कीड़ों को नष्ट करते हैं। 

✅  इसकी लकड़ी की राख पीने से तिल्ली की सूजन दूर होती है।

✅  इसकी जड़ को पानी में पीसकर नाक में टपकाने से मिर्गी का दौरा बंद हो जाता है।

✅  पलाश की छाल और सोंठ का काढ़ा बनाकर पिलाने से सांप का जहर दूर होता है।

✅  इसके पत्तों को गरम करके बांधने से फोड़े फुंसी मिट जाते हैं।

✅  इसके पत्ते को औटाकर पिलाने से पेट का ऑफरा और पेट का दर्द दूर होता है।

✅  इसके बीज और इन बीजों का तेल कृमि नाशक है।

✅  पलाश के फूलों को उबालकर गरम गरम पेट पर बांधने से रुका हुआ पेशाब, गुर्दे का शूल और सूजन दूर होता है।

✅  ढाक के बीज, तणगछ के बीज, काली मिर्च और हींग इन सब को पीसकर खिलाने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।

✅  कुष्ठ रोग में पलाश के बीजों का तेल चालमोगरा तेल के समान ही गुणकारी सिद्ध हुआ है। इसका विधिवत इंजेक्शन कुष्ठ रोग में चालमोगरा से अधिक लाभदायक सिद्ध हुआ है।

✅  इसके फूलों को रात भर ठंडे पानी में भिगोकर सुबह थोड़ी मिश्री मिलाकर पिलाने से नकसीर, गुर्दे का दर्द और पेशाब के साथ खून जाना बंद हो जाता है।

✅  इसके पंचांग की राख दस ग्राम बीस ग्राम कुनकुने घी के साथ पिलाने से खूनी बवासीर में बहुत लाभ होता है। इसके कुछ दिन तक लगातार सेवन करने से मस्से सूख जाते हैं।

✅  ढाक का गोंद 4 रत्ती से 15 रत्ती तक कुछ दालचीनी और अफीम मिलाकर पिलाने से अतिसार तुरंत बंद हो जाता है।

✅  इसकी छाल को पीसकर उसको 6 ग्राम की मात्रा में जल के साथ देने से अंडवृद्धि मिटती है।

✅  फोड़े फुंसी पर इनके ताजा रस से लाभ होता है।

✅  इसकी जड़ का स्वरस अथवा इसकी जड़ों का भभके के द्वारा निकाला हुआ अर्क आंखों में डालने से आंख की फूली, रतौंधी, पानी का बहना, आंखों की फुली और प्रारंभिक अवस्था का मोतियाबिंद भी ठीक हो जाता है। 

✅  ढाक के बीजों को नींबू के रस के साथ पीसकर लगाने से दाद और खुजली में लाभ होता है।

✅  इसके फूलों की पुल्टिस बनाकर बांधने से सूजन बिखर जाती है।

✅  इसकी छाल और सौंठ को उठाकर छानकर पिलाने से सांप के विष में लाभ होता है।

✅  इसके पत्तों का पुल्टिस बांधने से बंद गांठ में लाभ होता है।

✅  इसके गोंद को पानी में गलाकर लेप करने से कष्ट साध्य पित की सूजन भी मिट जाती है।

✅  इसकी जड़ के अंतर छाल को दूध के साथ पीने से पुरुषार्थ बढ़ता है।

✅  इसके फूलों का पुल्टिस बांध ने से मुत्राशय के रोग मिटते हैं और अंडकोष की सूजन भी बिखर जाती है।

✅  इसकी जड़ को पानी में घिसकर नाक में टपका ने से मिर्गी का वेग मिटता है।



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ढाक और आंतों के कीड़े | Dhak or Aanto ke Kide

इसके बीजों को पानी में भिगोकर छिलका उतारकर उनके मगध का सूखा हुआ चुरण पीसकर 1 ग्राम की मात्रा से सुबह, शाम और दोपहर 3 दिन तक देना चाहिए और चौथे दिन अरंडी का तेल खिला देना चाहिए इस प्रयोग से आंतों के लंबे कीड़े निकल जाते हैं।


ढाक और यकृत के विकार | Dhak or Liver Disease

इसके पंचांग की राख 50gm लेकर पाव भर पानी में मिलाकर रात भर रख दे। सवेरे भुने हुए चने छिलकर एक मुठ्ठी खिलाने के बाद इसका नितरा हुआ जल ऊपर से पिला दे। इस प्रकार कुछ दिनों तक करने से यकृत के विकार शांत होते हैं। इस रोग की यह एक सिद्ध औषधि है।

ढाक और मूत्र कच्छ | Dhak or Mutrakacha

ढाक की सूखी हुई कोप्ले, डाक का गोंद, ढाक की छाल और डाक के फूलों को मिलाकर चूर्ण बना लेना चाहिए। जितना इस चूर्ण का वजन हो उतनी ही मिश्री इसमें मिला देनी चाहिए। इसी में से 6 ग्राम चूर्ण दूध के साथ रोज लेने से मूत्र कच्छ मिटता है।


ढाक और गर्भनिरोधक आयुर्वेदिक दवा | Dhak or Contraceptive Ayurvedic medicine 

इसके बीजों को जलाकर उनमें आधी हींग मिलाकर पीसकर रख लें। इसको एक ग्राम से 3 ग्राम तक की मात्रा में मासिक धर्म के बाद तक देने से स्त्री के गर्भ धारण शक्ति नष्ट हो जाती है। मगर इस प्रयोग को 3 महीने तक हर मासिक धर्म पर करना चाहिए। 

पलाश के बीज दस ग्राम शहद बीस ग्राम और घी दस ग्राम इन सब को औटाकर इसमें रुई को भिगोकर बत्ती बनाकर स्त्री प्रसंग से 3 घंटे पहले योनि मार्ग में रखने से गर्भाधान होने नहीं पता।


ढाक और नेत्र रोग | Dhak Ki Jad Ka Ark

नेत्र रोगों के लिए भी ढाक एक बहुत उपयोगी वस्तु साबित हुई है। इसकी जड़ों से निकला हुआ अर्क आंखों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। इसको निकालने की विधि इस प्रकार है- 

ढाक की ताजी जड़ों को लेकर उनके दो 2 2 इंच के टुकड़े कर लेना चाहिए। फिर उन टुकड़ों को कुचलकल मिट्टी के एक चिकने बर्तन में तीन चौथाई तक भर देना चाहिए। फिर उस हांडी के खाली हिस्से में एक चीनी मिट्टी का प्याला सीधा रख देना चाहिए। फिर हांडी के ऊपर मिट्टी का ढक्कन लगाकर उसके मुंह को गेहूं के गुथे हुए आटे से बंद कर देना चाहिए। उस मिट्टी के ढक्कन में ठंडा पानी भरकर चुल्हे पर चढ़ाकर मध्यम आंच देनी चाहिए। जब ढक्कन का ठंडा पानी गर्म हो जाए तो गर्म पानी निकालकर ठंडा पानी भरते रहना चाहिए। ऐसा करने से उन जड़ों के अंदर रहा हुआ रस भाप बनकर उस ढक्कन पर लगेगा वहां से पीछा टपक कर उसी चीनी के प्याले में गिरेगा यही ढाक का अर्क कहलाता है। इसको छान करके शीशी में भर लेना चाहिए। इसकी एक बूंद आंखों में डालते रहने से आंख की झांक, फुली, खील, मोतियाबिंद, रतौंधी इत्यादि सब प्रकार के नेत्र रोग नष्ट होते हैं। इसी अर्क की चार पांच बूंद नागर बेल के पत्ते में रखकर खाने से भूख बढ़ती है और काम शक्ति प्रबल होती है।


ढाक और तांबे की भस्म | Tambe Ki Bhasam Banaye Palash se

पलाश की जड़ के रस में एक प्रकार की तांबे की भस्म तैयार की जाती है जो नेत्र रोग के लिए बहुत उपयोगी है इसकी विधि इस प्रकार है-

तांबे के पत्ते लेकर उनके बराबर वजन की सोनामक्खी नामक उपधातु को लेकर ढाक की जड़ के रस में घोट ले। उस घुटी हुई सोना मक्खी को तांबे के पत्रे के दोनों तरफ लेप कर दे और छाया में सुखा लें। सूख जाने पर ढाक की एक बड़ी जड़ को लेकर उसमें ऐसा खड्डा करें कि जिसमें यह सब पत्रे समा जाए उस खड्डे में इन पत्रों को रखकर उस खड्डे का मुंह उसी के बुरादे से दबा दबा कर बंद कर देना चाहिए। उसके बाद उस पर कपड मिट्टी करके 5 किलो उपलों कि आंच में फूंक देना चाहिए। इस प्रयोग से एक ही आंच में तांबे की भस्म तैयार हो जाती है। इस भस्म को आंखों में आॅंजने से आंखों के कई कठिन रोग आराम हो जाते हैं।

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ढाक और काम शक्ति की कमजोरी | Weakness of Sex work power

ढाक की नरम कोंपले 70gm और पुराना गुड 10gm  इन दोनों को पिसकर कर 14 गोलियां बना लें रोजाना एक गोली खाने से शीघ्रपतन का रोग दूर होता है। ढाक की जड़ों को कुचल कर ओटाकर उन का घनत्व निकालकर पान में देने से मनुष्य की काम शक्ति बढ़ती है। ढाक की जड़ों का रस निकालकर उसमें तीन दिन तक गेहूं को भिगो दें उसके बाद उन्हें पिस ले इसका हलवा बनाकर खाने से प्रमेह, शीघ्रपतन और काम शक्ति की कमजोरी दूर होती है।


ढाक और नपुंसकता नाशक तेल | Impotent Perishable Oil

 इसके बीज नपुंसकता चिकित्सा के लिए बहुत उत्तम औषधि है। इन बीजों को 1 घंटे तक पानी में भीगो देना चाहिए। उसके बाद इनके ऊपर के पतले छिलके को दूर कर के भीतर की मगज को सूखा लेना चाहिए। उसके बाद एक मिट्टी की हंडिया लेकर उसके पर्दे में एक छेद करके उस हंडिया में पलाश के बीजों को भरकर के ऊपर ढक्कन लगाकर कपड़मिट्टी कर देना चाहिए। फिर जमीन में एक आधा गज लंबा चौड़ा और गहरा गड्ढा खोदकर उस गड्ढे के अंदर एक छोटा सा गड्ढा और खोदना चाहिए उस छोटे गड्ढे में एक मिट्टी का अथवा कलई का प्याला रखकर उस पयाले के ऊपर उस मिट्टी की हंडिया को इस तरह से रखना चाहिए जिससे उसकी पेंदी वाला छेद उस प्याले के बीचो बीच में रहे उसके बाद उस हांडी के आसपास बाकी बची हुई जगह में उपले भरकर आग लगा देनी चाहिए। जब आग बुझ के ठंडी हो जाए तब सावधानी के साथ बर्तनों को निकाल कर नीचे के प्याले में इकठ्ठे हुए तेल को शीशी में भरकर रख लेना चाहिए। इस तेल की दो-चार बूंद कामेंद्रिय के ऊपर के सुपारी भाग को छोड़कर मालिश करने से कुछ ही दिनों में सब प्रकार की नपुंसकता दूर होती है और काम शक्ति जागृत होती है। अगर इस विधि से यह तेल नही निकाला जाए तो बालुका यंत्र या पाताल यंत्र से भी तेल निकाला जा सकता है और वह भी ऐसा ही काम देता है।


ढाक और कृमि रोग | Dhak and worm disease

ऊपर लिखा आए हैं कि पलाश के बीज कृमि रोग के लिए महा औषधि है। इनके बीजों को निशोत, किरमानी, अजवाइन, कपिला, वायबिडंग और गुड़ के साथ देने से सब प्रकार के कृमि नष्ट होते हैं।

जिस प्रकार इसके बीजों का अर्क पेट के अंदर के कीड़ों को नष्ट करता है। उसी प्रकार इनका बाहृय प्रयोग बाहरी जंतुओं को नष्ट करने की अद्भुत शक्ति रखता है। यही कारण है कि नारू के रोग में भी यह वनस्पति अच्छा लाभ बतलाती है। इसका उपयोग करने की विधि इस प्रकार है-

 पलाश के बीज, जहरी कुचले, रस कपूर, सादा कपूर और गूगल इन सब औषधियों को लेकर बारीक पीसकर पानी के साथ खरल करके फिर एक पीपल के पत्ते पर उनका लेप करके उस पीपल के पत्ते को नारू के फोले के ऊपर बांध देना चाहिए इस पट्टी को 3 दिन तक नहीं खोलना चाहिए इस प्रयोग से नारू का कीड़ा बहुत शीघ्र मर जाता है।


ढाक और सांप का जहर | Dhak and snake venom

सांप के जहर पर भी यह वनस्पति एक उत्तम औषधि मानी जाती है। इसकी जड़ की छाल को पीसकर उसका ताजा रस निकालकर रोगी के बलाबल अनुसार 4 से 10 तोले तक की मात्रा में देने से बिना दस्त उल्टी हुए जहर उतर जाता है।

रोगी को शुरू शुरू में प्रति तीसरे दिन अमलतास का जुलाब दिया गया और उसके पश्चात नीचे लिखे औषधि का उसे सेवन कराया गया-

पलाश की जड़, पत्ते, फूल, छाल, और बीज यह पांचों वस्तुएं 2 2 किलो लेकर धुप में सुखाकर आग में जलाकर राख कर लेना चाहिए। फिर उस रात में 10 किलो पानी मे डालकर अच्छी तरह मसल कर एक रात भर पड़ा रहने देना चाहिए। फिर उस पानी को निथारकर चूल्हे पर चढ़ाकर उबालना चाहिए जब दो किलो पानी रह जाए तब उसमें बकरी का मूत्र, गाय का मूत्र और मनुष्य का मूत्र दो किलो, आंकड़े का दूध 80gm, काली सरसी की अंतरझाल, सरसी के फूल, स्वर्ण दारूहल्दी, दारू हल्दी, तुलसी की मंजरी, मुलेठी की जड़, बेर की लाख, सेंधा नमक, जटामासी, निर्गुंडी के बीज, हींग, सोंठ, मिर्च, पिपर, अमलतास का गूदा, बांझ ककोडे का सुखा आया कंद, कुक्कड़ बेल की जड़, पीपला मूल, मालकांगनी की जड़ और अनंत मूल यह सब चीजें 80 80gm लेकर कूट पीसकर उसमें डाल कर तांबे के बर्तन में हल्की आंच से उबालना चाहिए जब गाढ़ा हो जाए तब उसको नीचे उतारकर थालियों में फैला देना चाहिए ठंडा होने पर उसकी 2 ग्राम की गोलियां बना लेनी चाहिए।

इन गोलियों में से एक एक गोली दो दो रुपए भर गाय के घी के साथ मिलाकर उस रोगी को खिलाई जाती थी और ऊपर से आधा पाव गाय का दूध पिलाया जाता था। इसी प्रकार इसकी एक गोली को काली सिरसी के काढ़े में मिलाकर सारे शरीर पर लगा दी जाती थी। इस प्रकार 1 महीने तक इसका प्रयोग करने से विष के सब उपद्रव नष्ट हो गए।


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