अदरक / Ginger / Zingiber Officinale
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Adrak / Ginger / Zingiber, Officinale |
अदरक का परिचय | Adrak Ki Pahchan
अदरक हिंदुस्तान में सब स्थानों में बोया जाता है। इसका झाड़ आध-एक हाथ ऊंचा होता है। इसके पत्ते बांस के पत्ते जैसे होते हैं। इसकी जड़ में एक प्रकार का कंद होता है इसको अदरक कहते हैं। यह दो प्रकार का होता है। एक चुंसेदार और दूसरा बिना चुंसेदार यह चैत्र वैशाख में बोया जाता है।
अदरक के अन्य भाषाओं में नाम | Adrak Ke Naam
संस्कृत - आर्दक (aadrak), श्रृग्डबेर (Sragdber), कटुभद्र (Katubhadra), आर्द्रशाक (aardraksak), आद्रिका (aadrika),।
हिंदी - आदी (Aadi), अदरक(Adrak), अदरख (adrakh)।
गुजराती - आदु (aadu)।
मराठी - आलें (Aale)।
बंगाली - आदा (Aada)।
पंजाबी - अदरक (Adrak)।
तेलुगू - अल्लम (Allum)।
द्राविडी - हमिसोठ (Hamisoth)।
फारसी - जबील रतब (Jbilratab)।
लेटिन - Zingiber, Officinale, Amomum Zingiber.
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adrak ke fayde |
अदरक के गुण-दोष और प्रभाव | Adrak Ke Gun-Dosh
आयुर्वेद अनुसार अदरक भेदक, भारी, तीक्ष्ण, उष्ण, दिपन, चरपरा, पाक में मधुर, रुक्ष तथा वात और कफ नाशक है।
लवण-मिश्रित' अदरक अग्नि को दिपन करने वाली, रुचि को उत्पन्न करने वाली, प्रिय, सारक तथा सूजन वात व कफ का नाशक है।
एक स्थान पर लिखा है कि वात, पित्त और कफ रूपी हाथी जो शरीर रूपी वन में विचरण करते फिरते हैं। उन को मारने के लिए एक ही महा पराक्रमी लवण युक्त अदरक रूपी शेर है।
अदरक कुष्ठ पांडुरोग, मूत्रकच्छ, रक्तपित्त, व्रण रोग, ज्वर, दाह, ग्रीष्म ऋतु और शरद ऋतु में अपथ्य है ऐसा भाव मिश्र का कथन है
अदरक तीसरे दर्जे में गर्म, पहले दर्जे में रुक्ष, पाचक, अध्मान व वायु को नाश करने वाला, क्षुधावर्धक, पक्वाशय कि स्निग्घत्ता व कफ का नाश करने वाले तथा पाचन शक्ति को बढ़ाने वाला है। यह शीत प्रकृति वाले के लिए गुणकारी और उष्ण प्रकृति वाले के लिए हानिकारक है। इसकी जड़ें चरपरी, अग्नि वर्धक, कामोद्दीपक, पोस्टिक, कफनिस्सारक व पेट के आफरे को दूर करने वाली होती है। यह नेत्र की ज्योति को बढ़ाने वाला, मस्तिष्क के कर्मियों को नष्ट करने वाला, गठिया, सिर दर्द तथा दूसरी तकलीफों में फायदा पहुंचाने वाला है। छोटे नागपुर में इसकी ताजा जड़ को पीसकर शहद के साथ मिलाकर आग पर गर्म करके खासी के रोगियों को दी जाती है।
'इस वनस्पति का ताजा रस तेज मुत्रनिस्सारक औषधि मानी गई है। इसको देने से बीमार लोगों को दिन पर दिन मूत्र की मात्रा बढ़ती गई है। लेकिन यह औषधि पुराने हृदय रोग और ब्राइड्स डिसीज ( गुर्दे की खास बीमारी जिसका सबसे प्रथम डॉक्टर ने वर्णन किया था) में उपयोगी सिद्ध नहीं हुई बल्कि उसकी हालत दिन प्रतिदिन खराब होती गई' (इंडियन मेडिकल प्लांट्स)
अदरक पेट के आफरे को दूर करने वाला और पाक स्थली कि अंतड़ियों को उत्तेजित करने वाला है। यही कारण है कि भारतीय चिकित्सा शास्त्रों के अंदर इसको इतना अधिक महत्व दिया गया है। यह कोष्ठ वायु के लिए एक प्रकार का भेदक इलाज है। इस के मिश्रण से भारतीय व ब्रिटिश औषधि विज्ञान में कई औषधीय बनाई जाती है।
अदरक का रासायनिक विश्लेषण | Ginger chemical analysis
अदरक मे 1% से लेकर तीन प्रतिशत तक एक प्रकार का तेल रहता है। जो कि उड़नशील होता है। जेमिका के अदरक में यह 1% रहता है, अफ्रीका के अदरक में तीक्ष्ण तत्व रहते है वह उडनशील नहीं होते। इसके वैज्ञानिक तत्व क्या है इसका पता अभी नहीं लगा है।
सौंठ व अदरक यह दोनों एक ही वस्तु है। गीली हालत में जब सौंठ रहता है तब उसे अदरक कहते हैं। जब सूख जाती है तब सौंठ कहते हैं। भारतीय वैदिक काल में प्राचीन काल से ही सौंठ का उपयोग इतना अधिक किया जाता है कि जिसका विवेचन नहीं किया जा सकता। इस औषधि पर आर्य ग्रंथकारों को इतनी श्रद्धा रही है कि प्रत्येक औषधि, चूर्ण, काढा, गोली, पाक, अवलेह इत्यादि सब में इसका उपयोग उन लोगों ने किया है। इसका वर्णन हम आगे जाकर सौंठ के प्रकरण में करेंगे। अदरक के रस का उपयोग भी स्थान स्थान पर किया गया है।
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अदरक के फायदे | Adrak Ke Fayde
जलोदर में अदरक के फायदे | Jaloder Mein Adrak Ke Fayde
50gm ताजे अदरक को कूटकर उसका रस निकाल लेना चाहिए, उस रस के बराबर की मिश्री उसमें मिलाकर जलोदर के रोगी को पहले दिन प्रातः काल देना चाहिए। दूसरे दिन 70gm अदरक का रस निकालकर समान भाग मिश्री के साथ देना चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन 20 20gm अदरक का रस बढ़ाते हुए चले जाना चाहिए। जब यह मात्रा 250gm तक पहुंच जाए तब फिर उसको 20gm प्रतिदिन के हिसाब से घटाना चाहिए। जब वह पूर्व की अर्थात 50gm की मात्रा पर आ जाए तब औषधि को बंद करना चाहिए। अगर इतने पर भी सुजन का कुछ अंग बाकी रह जाए तो फिर उसे घटती बढ़ती मात्रा में अदरक के रस का सेवन करना चाहिए। जब तक औषधि चालू रहे तब तक रोगी को केवल दूध का आहार देना चाहिए मगर औषधि की बनिस्बत अनुपान के अंदर अदरक का रस ज्यादा पसंद किया गया है।
वमन | Ulti Mien Adrak Ka Paryog
एक तोले अदरक के रस को एक तोला प्याज के रस के साथ देने से उल्टी व जी की मिचलाहट बंद होती है।
हैजा | Heja Me Adrak Ka Paryog
अदरक का रस एक तोला, आक की जड़ एक तोला इन दोनों को यहां तक खरल करे की गोली बनाने योग्य हो जावे। फिर इसकी काली मिर्च के बराबर गोली बना लेनी चाहिए। इन गोलियों को गुनगुने पानी के साथ देने से हैजे में लाभ पहुंचता है।
इसी प्रकार अदरक का रस व तुलसी का रस समान भाग लेकर उसमें थोड़ी सी शहद अथवा उसमें थोड़ी सी मोर के पंख की भस्म मिलाने से भी हैजा मैं बहुत लाभ पहुंचता है।
खांसी व श्वास | Kansi Me Adrak Ka Upyog
अदरक के रस में शहद मिलाकर चटाने से श्वास, खांसी, जुखाम व कफ मिटता है।
सुजन | Sujan me Adrak Ka Upyog
अदरक के रस में पुराना गुड़ मिलाकर पिलाने से सारे शरीर की सूजन उतरती है। परंतु इस प्रयोग का सेवन करते समय केवल बकरी का दूध पिलाना चाहिए।
कान का दर्द | Kan Dard Me Adrak Ka Paryog
अदरक के रस को गुनगुना करके कान में डालने से कान का दर्द मिटता है।
जोड़ों का दर्द | Jodo Ke Dard Me Adrak Ka Upyog
अदरक के एक किलो रस में तिल्ली का आधा किलो रस डालकर आग पर चढ़ाना चाहिए। जब रस जलकर तेल मात्र शेष रह जाए तब उतारकर छान लेना चाहिए। इस तेल की शरीर पर मालिश करने से जोड़ों की वात पीड़ा मिटती है।
पीलिया | Piliya Mein Adrak
अदरक, त्रिफला और गुड़ तीनों को मिलाकर पीने से पीलिया मिटता है।
मंदाग्नि | Adrak or Khaya Piya
इसके रस में नींबू का रस मिलाकर पिलाने से ठंडी पड़ी हुई मंदाग्नि तेज हो जाती है और खाया पिया लगना शुरू हो जाता है।
दन्त पिड़ा | Adrak se dant Dard Dur Kare
सर्दी की दन्त पीड़ा में इस के टुकड़े को दातों के बीच में दबाने से लाभ होता है।
👉 कंबोडिया में इसकी जड़े सुगंधित व पौष्टिक धर्मों के रूप में काम में ली जाती है। फोड़े व ग्रंथियों के ऊपर लगाने पर भी यह काम में लिया जाता है।
👉 पेरक में इसकी जड़ की पतली पतली फांके कृमि नाशक औषधि के रूप में प्रसिद्ध है।
👉 मलाबार में पियानू नाम के स्थानों में अदरक का ताजा रस जलोदर रोग में लाभ पहुंचाने वाला और मूत्र निस्सारक माना जाता है। ऐसे करीब 3 केस देखे गए हैं जिनमें कि इसे जलोदर में औषधि के रूप में देने से लाभ हुआ है। इसके देने से पेट की सूजन में भी फायदा हुआ है।
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आर्द्रक अवलेह | Adrak Ka Avleh
पुराना गुड एक पाव, 1 किलो अदरक के रस में मिलाकर इसकी पतली चाशनी करें फिर उनमें तज, पत्रज, नागकेसर, छोटी इलायची, लवंग, सोंठ, काली मिर्च और पीपर आधी-आधी छटांक(25-25gm) लेकर महीन चूर्ण कर उस चासनी में मिला दें। इस अवलेह को 3 ग्राम से 10 ग्राम तक सवेरे शाम चाटने से श्वास, खांसी, मंदाग्नि, कब्जियत तथा अरुचि रोग दूर होते हैं।
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