अश्वगंधा नागोरी / Indian Ginseng /Withania Coagulans / Winter Cherry
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Ashwagandha Nagori |
अश्वगंधा नागोरी के अन्य नाम | Ashwagandha Nagori Ke Naam
संस्कृत - अश्वगंधा(Ashwagandha), तुरगी(Turgee), पीवरी(Pivari), पुष्टिदा(Pustida), ।
हिन्दी - असगंध(Ashgand), अश्वगंधा(Ashwagandha), अश्वगंधा नागोरी(Ashwagandha Nagori)।
गुजराती - आसंध(Asandh)।
लेटिन - Withania Coagulans
इंग्लिश - Indian Ginseng / Winter Cherry
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indian Ginseng / Ashwagandha Nagori |
अश्वगंधा नागोरी की पहचान | Ashwagandha Nagori Ki Pahchan
बाजार में अश्वगंधा के नाम से जो सफेद रंग की जड़े बिकती है वह इसी वनस्पति की जड़े हैं। मराठी में जिसे ढोरगूंज और गुजराती में घोड़ाकुन कहते हैं वह वनस्पति यह नहीं है। इसमें नशीला स्वभाव बिल्कुल नहीं होता। यह वनस्पति बाजारों में सब और मिलती है। मगर घोड़ाकुन या ढोरगूंज सर्वत्र नहीं मिलती। सारंगधर भावप्रकाश इत्यादि में जिस पोस्टिक और वीर्य वर्धक अश्वगंधा का नाम वर्णित किया गया है वह यही अश्वगंधा नागोरी है। इस वनस्पति की कई स्थानों पर बड़े पैमाने पर खेती भी की जाती है।
अश्वगंधा नागोरी के गुण-दोष और प्रभाव | Ashwagandha Nagori Ke Gun-Dosh
आयुर्वेदिक मत से यह वनस्पति वात, कफ, सूजन, श्वेत कुष्ठ और कफ रोगों को नष्ट करने वाली तथा बलकारक, रसायन, कड़वी, कसेली और अत्यंत वीर्य वर्धक है।
यूनानी मत से यह कुछ कड़वी, पोस्टिक, श्वास को दूर करने वाली, रितु स्राव को नियमित करने वाली तथा कटिवात और संधि प्रदाह में लाभदायक है।
अश्वगंधा नागोरी के फायदे | Ashwagandha Ke Fayde
बलवर्धक - सफेद मूसली, विधारा, शतावरी, कौंच इत्यादि धातु वर्धक औषधीयों के साथ इसकी फंकी लेकर ऊपर से दूध पीने से बल बहुत बढ़ता है।
गठिया - इसके पंचांग का बीस से पचास ग्राम रस पीने से गठिया में लाभ पहुंचता है।
क्षय रोग - अडुसे के क्वाथ के साथ इसके चूर्ण की फंकी लेने से क्षय रोग में लाभ पहुंचता है।
बांझपन - इसके चूर्ण की 3 ग्राम से 6 ग्राम तक की फंकी रजोधर्म के प्रारंभ में देने से स्त्री को गर्भ ठहरने की संभावना बढ जाती है।
इस समय में दूध और चावल का भोजन कराना चाहिए इसके क्वाथ से सिद्ध किया हुआ घी पिलाने से मासिक धर्म से शुद्ध हुई स्त्री गर्भधारण करती है।
कमर का दर्द - अश्वगंधा के चूर्ण को शक्कर और घी में मिलाकर चटाने से कटीवात अर्थात कमर का दर्द जाता रहता है।
नारू - अश्वगंधा को छाछ या तेल में पीसकर लेप करने से नारु किडे में लाभ पहुंचता है।
वातरक्त - अश्वगंधा और चोपचीनी के रस का काढ़ा पिलाने से वात रक्त में लाभ पहुंचता है।
अश्वगंधा नागोरी से बनने वाले कुछ योग | Ashwagandha Ayurvedic Medicine
अश्वगंधादि नागोरी चूर्ण | Ashwagandha Nagori Churna
अश्वगंधा और विधारा समान भाग लेकर दोनों को बराबर मिलाकर बोतल में भरकर रख देना चाहिए। इसमें से एक तोला चूर्ण सवेरे एक तोला शाम को दूध के साथ धैर्य पूर्वक लेने से बहुत पुरुषार्थ बढ़ता है। वातव्याधि नष्ट होकर बुढ़ापा मिटता है। सफेद बाल काले हो जाते हैं इत्यादि अनेक गुण इस चूर्ण में है।
अश्वगंधादि नागोरी घृत | Ashwagandhadi Nagori Ghart
अश्वगंधा की जड़ 4 किलो लेकर दस लिटर पानी में इसका क्वाथ बनाना चाहिए। जब चौथाई जल शेष रेह जावे तब वस्त्र से छानकर उसमें गाय का घी 640 ग्राम, गाय का दूध ढाई किलो तथा काकोली, क्षिरकाकोली, मैदा, महामेदा, जीवक, ऋषभक, कोंच बीज, अडूसा, मुलेठी, मुनक्का, धमासा, पीपल, जायपत्री, खिरेटी, विदारीकंद, शतावरी इन औषधियों को बीस बीस ग्राम लेकर पानी के साथ पीसकर लुग्दी बना दूध और घी के बीच में रखकर हल्की आज से पकावे जब दूध और काढा जलकर केवल घी मात्र शेष रह जाए तब उतारकर छान लें।
इस घी के सेवन से क्षय, दुर्बलता, बालों का सफेद होना, हृदय रोग और नपुंसकता, खांसी, श्वास, वातव्याधि, स्त्रियों का बांझपन आदि अनेक व्याधिया दूर होती है।
यह घी अत्यंत बलशाली है।
अश्वगंधा नागोरी पाक | Ashwagandha Nagori Paak
अश्वगंधा नागोरी 1 किलो, सत्तूआसोंठ 1 किलो, छोटी पेपर पाव भर काली मिर्च आधा पाव इन सब को पीसकर कपड़छान कर लेना चाहिए। फिर 16 किलो दूध को औटाकर, जब वह आधा रह जाए तब उसमे ऊपरलिखे चूर्ण डालकर उसका खोवा कर लेना चाहिए। जब खोवा हो जावे तब कढ़ाई में 2 किलो घी डालकर खोऐ को भून लेना चाहिए। जब खोवा लाल हो जावे तब उसे उतारकर उसमें तज, तेजपात, नागकेसर, इलाइची, लोंग, पीपलामूल, जायफल, नेत्रवला, सफेद चंदन का बुरादा, नागर मोथा, सूखे आंवले, वंशलोचन, खैरसार, चित्रक की छाल और शतावर इन सबको 10-10 ग्राम लेकर पीस, कूटकर छान लेना चाहिए। इसके पश्चात 4 किलो मिश्री की चासनी बनाकर उसमें ऊपर का बना हुआ खोवा और चूर्ण अच्छी तरह मिलाकर आधि-आधि छटा के लड्डू अर्थात 20-20 ग्राम के लड्डू बांध लेना चाहिए।
जिन लोगों की प्रकृति सर्द और वादी कि है। उन लोगों को जाड़े के दिनों में एक लड्डू खाकर ऊपर से दूध पी लेना चाहिए। यह पाक वातव्याधि, बुढ़ापा, कमर और जोड़ों का दर्द तथा श्वास और खांसी को दूर करता है। ख्याल रखना चाहिए कि यह पाक बहुत गर्म है इसलिए यह पाक गर्म मिजाज वाले आदमियों को नहीं खाना चाहिए।
आदमियों के लिए यह पाक वास्तव में अमृत है।
धातुवर्धक सुधा | Dhatuvardhak Sudha
अश्वगंधा नागोरी आधा पाव, सतावर पाउडर, सफेद मूसली डेड पाव, तालमखाना 500 ग्राम, मखाने 750 ग्राम, सिमर का मुसला 750 ग्राम, मिश्री 1 किलो,
सब दवाइयों को कुट पिस छानकर मिश्री मिला देना चाहिए और हड्डी में रखकर उसका मुंह बांधकर रख देना चाहिए। सवेरे शाम आधा किलो गेहूं के आटे की रोटी बनाकर उसमें चुरकर उसमें आधा पाव चीनी और हांडी की तीन तोले दवा मिलाकर जौ की भूसी के साथ गाय को खिला देना चाहिए। यह खुराक 40 दिन तक गाय को खिलाने के 10 दिन बाद गाय का धारोष्ण दूध मिश्री मिलाकर सवेरे शाम पीना चाहिए। ऐसा दूध 40 दिन पी लिया जाए तो अत्यंत बल वृद्धि होगी।
एक धनी मारवाड़ी को यह दूध सेवन कराया परिणाम यह हुआ कि उसकी हड्डियां हष्ट-पुष्ट हो गई, महा कुरूप चेहरा गुलाब का फूल बन गया मतलब यह है कि इसके सेवन से क्षय, क्षिणता, प्रमेह, दिल, दिमाग की कमजोरी और सिर के रोग में बहुत लाभ होता है। जिनको वीर्य की कमी से नामर्दी और क्षय हो उनके लिए तो यह अमृत ही है।
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