अपामार्ग / उल्टा कांटा / Apamarg / Ulta Kanta / Achyranthes Aspera
अपामार्ग (उल्टा कांटा) का पौधा की पहचान | Apamarg Ka Poudha Ki Pahchan
अपामार्ग का छोटा झाड़ होता है। जो विशेषकर बरसात में स्थान-स्थान पर पैदा होते हुए देखा जाता है। कहीं-कहीं पर यह 12 माष भी होता है। इसकी ऊंचाई 1 से 3 हाथ तक होती है। इसके पत्ते लंबाई लिए हुए कुछ गोल और नोकदार होते हैं। पत्तों के बीच में से एक मंजरी निकलती है उसमें सूक्ष्म और कांटे युक्त बीज होते हैं।
अपामार्ग दो प्रकार का होता है। एक लाल दूसरा सफेद, लाल अपामार्ग के डंठल का रंग लाल होता है और उसके ऊपर जो बीज लगती है उनके ऊपर काटे के समान वस्तु होती है। सफेद अपामार्ग के डंठल और पत्तों का रंग हरा कुछ सफेदी लिए होता है और उनके ऊपर जो के समान लंबे बीज आते हैं।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) के अन्य भाषाओं में नाम | Apamarg (Ulta Kanta) Ke Naam
संस्कृत - अपामार्ग (Apamarg)।
हिंदी - चिरचिटा (Chirchita), चिरचिरा (Chirchira), लटजीरा (Latjira), ओंगा (Onga), उल्टा कांटा (Ulta Kanta)।
गुजराती - अधेडो (Adedo), अधेढो (Adedho)।
मराठी - अधाडा (Adhada)।
बंगाली - आपांग (Aapang)।
मारवाड़ी - आंधीझाडो (Aandhijhado)।
सिन्धी - मर्जिका (Marjika)।
कर्नाटक - उत्तरेणी(Uttreni)।
तेलंगी - दुच्चेणीके (Duccenike)।
लेटिन - Achyranthes Aspera (एचीरेन्थस एस्पेरा)
फारसी - अत्कूमह (Atkumah)।
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ulta kanta ka podha |
अपामार्ग (उल्टा कांटा) के गुण-दोष और प्रभाव | Apamarg (Ulta kanta) Ke Gun-Dosh
आयुर्वेद के अंदर अपामार्ग के गणना अत्यंत प्रभावशाली दिव्य औषधियों में की गई हैं। वैदिक युग से ही इस औषधि की जानकारी यहां के लोगों को थी। शुक्ल यजुर्वेद में नमुची के कथानक में लिखा है कि नमुची को वरदान था कि उसे किसी ठोस या द्रव्य पदार्थ से दिन और रात्रि में कोई ना मार सकेगा। तब इंद्र ने कुछ ऐसे फेन एकत्रित किए जो ना तो द्रव्य थे ना ठोस और उसे दिन और रात्रि के मध्य काल में मार डाला। उस दैत्य के सिर से अपामार्ग का पौधा पैदा हुआ जिसकी सहायता से इंद्र संपूर्ण दैत्यों को मार डालने में समर्थ हुआ। अथर्ववेद के 70वें सुक्त के चौथे कांड में अपामार्ग की स्तुति दी गई है।
स्तुति इस प्रकार है - अपामार्ग तू हमारे अत्यंत भूख लगने के रोग को, प्यास लगने के रोग को, इंद्रिय शक्ति की कमजोरियों को और संतान न होने के रोग को दूर कर, हे अपामार्ग तू हमारी तृष्णा और भूख को नष्ट कर और काम शक्ति की हिनता और आंख की शक्ति की हीनता को दूर कर।
यह पौधा पहले दर्जे में ठंडा और रुक्ष है तथा कामोद्दीपक, वीर्य वर्धक, संकोचक, मुत्रल और धातु परिवर्तक है।
इस पौधे के फूल के डंठल और पौधे के बीजों का चूर्ण सांप व अन्य जहरीले जीवों के डंक पर लगाने के काम में आता है।
अपामार्ग का उत्तम काढा पैशाब लगाता है, जलोदर में यह लाभदायक पाया गया है, पेट दर्द तथा आमाशय की समस्या में इसके पत्तों का रस उपयोगी है। अधिक मात्रा में देने से यह गर्भपात और प्रसव-वेदना को उत्पन्न करता है।
दूसरी उपयोगी औषधियों के साथ इसको देने से बहुत अधिक फायदा होता है। जैसे आमाशय के रोग में इसको कुटकी इत्यादि कड़वे द्रव्य के साथ, रक्त के रोगों में लोह के साथ, हृदय रोग में खुशबूदार और पसीना लाने वाले द्रव्यों के साथ, मूत्र पिंड के रोगों में स्निग्ध द्रव्यों के साथ और सब प्रकार के पित्त रोगों में यकृत पर क्रिया करने वाले द्रव्यों के साथ अपामार्ग को देना चाहिए।
भोजन करने से पहले अपामार्ग को लेने से आमाशय में पाचक रस की वृद्धि होती है और आमाशय के मज्जा तंतुओं की जलन और उनसे होने वाली पीड़ा बंद हो जाती है। इस कारण अपामार्ग को अपचन रोग, अमाशय की शिथिलता तथा वेदना इत्यादि लक्षणों में कुटकी इत्यादि कड़वे द्रव्यों के साथ भोजन के पहले देना चाहिए। भोजन के पश्चात इसको देने से आमाशय की अमलता कम होती है। इसलिए अम्लता युक्त अपचन रोग में इसका गरम-गरम क्वाथ भोजन के बाद 2 घंटे के अंतर से देना चाहिए। आमाशय के रोगों में इसको बड़ी मात्रा में नहीं देना चाहिए क्योंकि बड़ी मात्रा में इसको देने से अमाशय में जलन पैदा होता है। यकृत पर अपामार्ग की क्रिया बहुत ही हितकारक होती है। इससे यकृत की पित्तवाहिनी नली की सूजन कम होती है यकृत की सब क्रिया सुधर जाती है, यकृत के रक्त का संचालन ठीक तरह से होने लगता है। इस कारण से पिताश्मरी और बवासीर रोग में इसको देने से लाभ होता है। अपामार्ग को देने से आंतों की अमलता कम होती है और उनमें अन्न सडने नहीं पाता जिससे अपामार्ग गुल्म और शुल रोग में लाभ पहुंचता है।
उपर्युक्त अवतरणो से मालूम होता है कि क्या प्राचीन और क्या अर्वाचीन सभी लोगों ने इस औषधि के दिव्य प्रभाव को मुक्त कंठ से स्वीकार किया है। दिल, दिमाग, अमाशय इत्यादि मनुष्य के सभी अंगों पर इसका प्रभाव पहुंचता है। खास करके इस औषधि में वामक मतलब उल्टी लाने वाला, पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, सिर दर्द को दूर करने वाला कामोद्दीपक व्रणपूरक, क्षुधानाशक आदि गुण विशेष तौर से रहते हैं।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) का रासायनिक विश्लेषण । Chemical Analysis of Apamarga (Ulta Kanta)
अपामार्ग की राख में 13% चुना, 4% लोहा, 30% क्षार, 7% सोराक्षार, दो प्रतिशत नमक, 2% गंधक और 3% मजा तत्वों के उपयुक्त क्षार रहते हैं। इसके पत्तों की राख की अपेक्षा इसकी जड़ की राख में यह तत्व अधिक पाए जाते हैं।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) की सेवन मात्रा। Intake quantity of apamarga (Ulta Kanta)
अपामार्ग की जड़ और बीज की मात्रा 6 ग्राम से 10 ग्राम तक, राख की मात्रा पांच से 15 रत्ती तक और क्षार की मात्रा दो से चार रती तक होती है।
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Apamarg Image |
अपामार्ग (उल्टा कांटा) के फायदे | Apamarg (Ulta Kanta) Ke Fayde
अपामार्ग (उल्टा कांटा) से करे जहर का इलाज। Treat poison with Apamarg (Ulta Kanta)
अपामार्ग (उल्टा कांटा) का काढ़ा। Apamarg (Ulta Kanta) Ka Kadha / Decoction of apamarga (Ulta Kanta)
अपामार्ग (उल्टा कांटा) करें कफ रोगों को दूर। Apamarga (Ulta Kanta) remove Kapha diseases
काले बुखार में अपामार्ग (उल्टा कांटा) का उपयोग। Use of Apamarga (Ulta Kanta) in black fever
मस्तिष्क रोगों में अपामार्ग (उल्टा कांटा) के सेवन से लाभ शिरोविरेचन। Benefits of Apamarga (Ulta Kanta) in brain diseases
मस्तिष्क की पुरानी बीमारियां, पीनस के भयंकर रोग, अंधा सीसी, मस्तक की जड़ता इत्यादि रोगों में जब मस्तक के अंदर कफ इकट्ठा हो जाता है, कीड़े पड़ जाते हैं और कोई दूसरी औषधियां काम नहीं करती तब अपामार्ग के बीजों को चुर्ण करके सूंघने से चमत्कारी लाभ होता है। इस चूर्ण को सुंघने से मस्तक के अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के जरिए निकल जाता है और वहां पर पैदा हुए कीड़े भी झड़ जाते हैं। अकेले अपामार्ग के अतिरिक्त इसके साथ में अगर बायबिडंग, सौंठ, मिर्च, पिपर, इलायची, मुलेठी, तुलसी के बीज इत्यादि कृमि नाशक तथा कफ नाशक औषधियों का चूर्ण भी मिला दिया जाए तो वह और भी अधिक लाभ पहुंचाता है। अगर इन्हीं औषधियों को पानी के साथ पीसकर लुगदी बनाकर उसमें चौगुना गोमूत्र और चौगुना काली तिल्ली का तेल डालकर मंदाग्नि पर पकाकर गोमूत्र जल जाने पर तेल को छानकर रख लिया जाए तो यह तेल सुघाने से भी मस्तक के किडो को नष्ट करता है। इसके बीजों को दूध में डालकर बनाई हुई दुध की खीर मस्तक के रोगों के लिए उत्तम औषधि है।
प्रसव विलम्ब व मुढगर्भ मे करे अपामार्ग (उल्टा कांटा) से चिकित्सा। Delay delivery and treatment with Apamarg (Ulta Kanta)
जिस स्त्री को प्रसव के समय भयंकर कष्ट हो रहा हो और प्रसव में विलंब हो रहा हो उसकी कमर में अगर रविवार और पुष्य नक्षत्र के दिन लकड़ी के औजार से खोदकर लाई हुई अपामार्ग की जड़ को बांध दिया जाए तो तुरंत प्रसव हो जाता है। लेकिन प्रसव होते ही जड़ तुरंत खोल देना चाहिए अन्यथा गर्भाशय के बाहर आने का डर रहता है। मूढगर्भ के कई केसों में जिन में डॉक्टरों ने ऑपरेशन की सलाह दी थी इस जड़ी ने विचित्र प्रभाव बतलाया है। अगर जड़ी बांधने के बजाय उसे पीसकर स्त्री के पेट पर लेप कर दिया जाए तो भी वही फायदा होता है।
उपदंश के घाव में अपामार्ग (उल्टा कांटा) के लाभ। Benefits of Apamarg (Ulta Kanta) in syphilis lesion
पथरी होने पर इस्तेमाल करे अपामार्ग (उल्टा कांटा)। Use apamarga (Ulta Kanta) when stones
अपामार्ग की 6 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से पथरी रोग में बड़ा लाभ पहुंचता है यह औषधि आमाशय के पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। किडनी के दर्द के लिए भी यह महा औषधि है।
खूनी बवासीर मे अपामार्ग (उल्टा कांटा) के फायदे। Benefits of Apamarg (Ulta Kanta) in bloody piles
इसके बीजों को पीसकर उनका चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम चावल के धोवन के साथ देने से बवासीर से पडने वाला खून बंद हो जाता है अथवा इसकी जड़, बीज और पत्तों को कूटकर उनके चूर्ण में समान भाग मिश्री मिलाकर 6 ग्राम की मात्रा में जल के साथ देने से भी खूनी बवासीर मिटती है।
नेत्र रोग मे अपामार्ग (उल्टा कांटा) का चमत्कारिक लाभ। The miraculous benefit of Apamarga (Ulta Kanta) in eye disease
इसकी जड़ को पानी के साथ महीन पीसकर आंख में अंजन करने से आंख की फूली तथा दूसरे नेत्र रोगों में लाभ पहुंचता है। अगर रतौंधी आती हो तो इसकी जड़ का 6 ग्राम चूर्ण शाम को भोजन के पश्चात खाकर ऊपर से पानी पीकर सो जाने से अच्छा लाभ पहुंचता है।
मलेरिया बुखार मे अपामार्ग (उल्टा कांटा) के औषधिय लाभ। Medicinal benefits of अॅपमर्ग (Ulta Kanta) in malarial fever
इसके पत्ते और काली मिर्च को समान भाग लेकर गुड़ के साथ दो दो रत्ती की गोलियां बनाकर बुखार आने के पहले देने से मलेरिया बुखार रुक जाता है।
दातों का दर्द दूर करे अपामार्ग (उल्टा कांटा) का पौधा। Apamarg plant to relieve the pain of teeth
इसकी ताजी जड़ से प्रतिदिन दातुन करने से दांत मोती की तरह चमकने लगते हैं। यह दातुन दांतों का दर्द, दांतों का हिलना, मसूड़ों की कमजोरी तथा मुंह की दुर्गंध को दूर करता है।
कंठ माला में अपामार्ग (उल्टा कांटा) से लाभ। Benefit from Apamarga (Ulta Kanta) in the necklace
इसकी जड़ की राख को खाने और उसको गांठो पर लगाने से कंठमाला में लाभ पहुंचता है।
शीघ्रपतन की कमजोरी मे अपामार्ग (उल्टा कांटा) का औषधिय नुस्खा\ Drug prescription of apamarga (Ulta Kanta) in premature ejaculation weakness
इसकी जड़ का चूर्ण 6 ग्राम लेकर उसमें दो रत्ती बंग भस्म मिलाकर खाने से प्रबल कामोदीपन होता है।
बिच्छू का जहर मे अपामार्ग (उल्टा कांटा) का गुणकारी नुस्खा। Effective recipe for scorpion venom
इस औषधि में विषनाशक प्रभाव भी बहुत है। कहते हैं इसकी फूल वाली डालियों पर अगर बिच्छू को रख दिया जाए तो वह बेहोश हो जाता है। इसके पत्तों के रस को हाथ में चुपडकर चाहे जैसे जहरीले बिच्छू को हाथ में लिया जाए और वह चाहे जितने डंक मारे तो भी उनका कुछ असर नहीं होता। जिसको बिच्छू ने काटा हो और वह चढ गया हो उसके यदि चढ़े हुए स्थान पर इसके पत्तों के रस की लकीर खींच दी जाए तो बिच्छू का जहर नीचे उतरने लगता है जो जो नीचे उतरे सोचो वह लकीरें भी नीचे नीचे करते जाना चाहिए जब जहर डंक पर आ जाए तब उसके पत्तों को पीसकर उनकी लुगदी डंक पर बांध देना चाहिए। इसके साथ ही भीतरी उपचार की तरह अगर इसकी जड़ को महीन पीसकर दस बारह गुणा पानी में घोलकर उसका पानी थोड़ा-थोड़ा जब तक कडवा न लगने लगे तब तक पिलाया जाए तो जहर उतर जाता है। पानी जो ही कड़वा लगने लगे पिलाना बंद कर देना चाहिए। क्योंकि यही जहर उतरने का सबूत है।
रक्त प्रदर के लिए अपामार्ग (उल्टा कांटा) का पौधा का नुस्खा Apamarg (Ulta Kanta) plant recipe for blood pressure
सफेद अपामार्ग का पंचांग 200gm, भेड़ के बालों की भस्म 200gm, सुनहरा गेरू 200gm इन तीनों चीजों को कूट पीसकर चूर्ण करें। इसमें से 6 ग्राम का चूर्ण गाय के कच्चे दूध में पिलाने से रक्त प्रदर मे शीघ्र आराम होता है।
श्वास और खांसी मे अपामार्ग (उल्टा कांटा) के फायदे। Benefits of Apamarg (Ulta Kanta) in breathing and cough
इसके सूखे पत्तों को हुक्के में रखकर पीने से श्वास रोग में लाभ पहुंचता है। अपामार्ग की जड़ में कफ की खांसी और दमे को नष्ट करने का चमत्कारिक गुण विद्यमान है। इसके सारे झाड़ को जड़ समेत उखाड़ कर उसे जलाना चाहिए फिर इसकी राख 10 रुपएभर लेकर उसमें 20 ग्राम सेंधा नमक, 20 ग्राम सज्जीखार, 20 ग्राम यवक्षार, 20 ग्राम नौसादर, 30 ग्राम हल्दी और 100 ग्राम अजवाइन डालकर उसका चूर्ण कर प्रतिदिन 2 ग्राम के करीब सवेरे शाम लेने से कफ की खासी में बहुत लाभ होता है।
इसी प्रकार इसकी जड़ का चूर्ण 12gm लेकर उसमें सात काली मिर्च का चूर्ण डालकर दोनों टाइम ठंडे जल के साथ साथ की लेने से 2 वर्ष का पुराना दमे का रोग दूर होता है। यह दवा 7 दिन तक पथ्पूर्वक लेने से 90% लाभ होता है। जब तक दवा चालू रहे तब तक गेहूं की रोटी, भात इत्यादि खाना चाहिए तथा छाती और कंठ पर घी की मालिश करते रहना चाहिए। इस प्रयोग से यदि कभी उल्टी हो तो उसे नहीं डरना चाहिए।
नासूर मे अपामार्ग (उल्टा कांटा) से लाभ। Benefit from Apamarga (Ulta Kanta) in canker
इसके पत्तों का रस नासूर के ऊपर लगाने से नासूर भर जाता है।
भस्माग्न्नि पर अपामार्ग (उल्टा कांटा) का फायदा। Advantage of Apamarga (Ulta Kanta) over Bhasmagni
भस्माग्न्नि रोग जिसमें बहुत भूख लगती है और खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है। उसमें अपामार्ग के बीजों का चूर्ण दस ग्राम देने से रोग मिट जाता है।
पेट का दर्द होने पर अपामार्ग (उल्टा कांटा) का औषधिय लाभ। Advantage of Apamarga (Ulta Kanta) over Bhasmagni
भयंकर पेट के दर्द में अपामार्ग की जड़ 6 ग्राम, कुकरौंधा के पत्ते 6 ग्राम, सफेद जीरा 3 ग्राम, काला नमक 1 ग्राम इन सब को पीसकर इसमें 6 ग्राम की खुराक देने से आराम होता है।
कान का बहरापन (उल्टा कांटा) दूर करे अपामार्ग। Advantage of Apamarga (Ulta Kanta) Ear Desease
अपामार्ग की जड़ को धोकर उसका रस निकाल ले जितना यह रस हो, उससे आधा तिल्ली का तेल मिलाकर आग पर चढ़ा दे जब सब पानी जलकर तेल मात्र शेष रह जाए तब छानकर शीशी में रख लें। इस तेल की दो से तीन बूंद गर्म करके कान में हर रोज डालने से कान का बहरापन दूर हो जाता है।
भुतोंन्माद पर अपामार्ग (उल्टा कांटा) का प्रयोग। Use of Apamarga (Ulta Kanta)
मज्जा तंतु समूह के रोग में विशेषकर भूतोंन्माद मे अपामार्ग के स्वरस को पिलाने से बहुत लाभ होता है। इससे हृदय में धड़कन कम हो जाती है।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) की दातुन दुर करे दांत के रोग। Toothache of Apamarga (Ulta Kanta)
दांत के रोग में इसकी लकड़ी की दातुन करने से, इसके पत्तों का रस मसूड़ों पर लगाने से और कान के रोगों में इसके क्षार से सिद्ध किया हुआ तेल टपकाने से बहुत लाभ होता है।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) के क्षार के फायदे। Benefits of Apamarg Chhar (Ulta Kanta)
अपामार्ग का क्षार रक्त में शीघ्रता से मिल जाता है। यह रक्त के पोषक गुणों को बढ़ाता है और उसके रंग को सुधारता है। रक्त के अंदर मिलकर यह क्षार शरीर के भिन्न-भिन्न मार्गो से बाहर निकलता है। इसका अधिक भाग मूत्र पिंड के मार्ग से और थोड़ा-थोड़ा भाग त्वचा, फेफड़े, अमाशय और यकृत के द्वारा बाहर निकलते हैं। जिन-जिन मार्गों से यह क्षार बाहर निकलता है। उन मार्गों की जीवन विनियम क्रिया को यह सुधारता है और तमाम शरीर की क्रिया को यह उत्तेजना देता है। तरुण आमवात, जीर्ण आमवात,क् क्षारयुक्त, संधीशोथ इत्यादि रोगों में इसका क्षार गुणकारी होता है।अपामार्ग (उल्टा कांटा) से बनने वाली औषधियां | Apamarg (Ulta Kanta) Medicine
अपामार्ग (उल्टा कांटा) क्षार। Apamarg (Ulta Kanta) Chhar
अपामार्ग के झाड़ के पंचांग को जलाकर उसकी राख को 8 गुने पानी में खूब अच्छी तरह से मिला कर रात भर पड़ा रहने देना चाहिए। सुबह जब राख का सब हिस्सा पानी में नीचे बैठ जाए तब ऊपर के समक्ष पानी को निकालकर, निकाले हुए पानी को हल्की आच से उसे उबालना चाहिए। जब उसकी हालत रबड़ी सरीखी हो जाए तब उसको उतार कर ठंडा कर उसकी टिकिया बनाकर धूप में सुखा लेना चाहिए। सूखने पर खरल में पीसकर बोतल में भर देना चाहिए यह क्षार अपामार्ग क्षार कहलाता है। इस क्षार को शहद के साथ चाटने से कफ वाली खासी मे आराम होता है। इसके अतिरिक्त यह आमाशय के विकास में होने वाली सूजन, जलोदर, यकृत की वृद्धि, और वायु गोला इत्यादि रोगों में भी लाभ पहुंचता है।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) क्षार तेल। Apamarg (Ulta Kanta) Chhar Oil
अपामार्ग का बनाया हुआ क्षार 200 ग्राम, तिल का तेल 400 ग्राम, पानी तिल के तेल से 4 गुना लिया जावे, जल के अंदर क्षार को 21 बार अच्छी तरह मिलाकर उसमें तेल डाल दिया जाए। उसके पश्चात अपामार्ग के पंचांग को पानी के साथ पीसकर बनाई हुई लुगदी 100gm लेकर उस पानी के बीच में रखकर मंदाग्नि से जल को उबालना चाहिए। जब इसमें से सारे जल का भाग जल जाए और केवल तेल का भाग मात्र शेष रहे तब उतारकर छान लेना चाहिए। यह तेल कानों के प्रत्येक दर्द के लिए लाभकारी है। इसको कान में टपकाने से कान की सूजन, बहरापन वगैरह रोग नष्ट होते हैं।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) आसव। Apamarg (Ulta Kanta) Aasav
अपामार्ग 2 किलो, अडूसा के पत्ते 2 किलो, केले के नए नरम पत्ते 2 किलो, जंगली बेर की जड़ की छाल 2 किलो, देसी गुड़ 4 किलो । गुड़ को 6 किलो पानी में भिगोकर इन औषधियों को जो कूट करके एक मिट्टी के बर्तन में अच्छी तरह मिलाकर डाल दे दूसरे दिन इसी बर्तन में यवक्षार 50 ग्राम, सब्जी खार 100 ग्राम और पपडिया नौसादर 25 ग्राम मिला दे। इसके पश्चात उस बर्तन का मुंह 15 दिनों तक बंद कर पड़ा रहने दे। फिर कपड़े से छानकर बोतलों में बंद करके रख दे। यह आसव तेज शराब की तरह बरता जाता है। श्वास के रोग में यह बहुत ज्यादा फायदेमंद साबित हुआ है यह पहली मात्रा में ही अपना असर दिखाता है।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) अवलेह। Apamarg (Ulta Kanta) Avleh
अपामार्ग का क्षार, यवक्षार, सज्जीक्षार, केले का क्षार, आंकड़े का क्षार, खांकरे का क्षार, इमली का क्षार, मूली का क्षार और कली चुन्ना यह सब वस्तुएं एक एक ग्राम, फुला हुआ टंकण क्षार दो ग्राम, कलमी शोरा 3 ग्राम, कालीमिर्च 20 ग्राम, सेका हुआ जीरा 20 ग्राम, लेंडी पीपर 30 ग्राम, इन सब को लेकर बारीक चूर्ण कर उसको एक बरनी में भरकर उसमें अदरक का रस 400 ग्राम, ग्वारपाठे का रस 400 ग्राम तथा नींबू का रस 400 ग्राम अच्छी तरह मिलाकर 7 दिन तक धूप में पड़ा रहने देना चाहिए। उसके पश्चात इसमें से 6 ग्राम अवलेह सुबह-शाम चाटने से पेट का दर्द, यकृत की वृद्धि, वायु गोला, हैजा, जलोदर इत्यादि रोग आराम होते हैं।
अपामार्ग द्वारा दूसरी बनने वाली भस्में | Apamarg (Ulta Kanta) Ki Bhasme
अपामार्ग (उल्टा कांटा) से तैयार सिंगरफ भस्म। Singarf Bhasma prepared from Apamarg (Ulta Kanta)
बढ़िया सिंगरफ 20 ग्राम खरल में डालकर 200gm आंकड़े के दूध में खरल करें। जब सारा दूध खत्म हो जाए तब उसकी टिकिया बनाकर छाया में सुखा लें। फिर एक मिट्टी की छोटी हांडी में 100gm अपामार्ग की राख बिछाकर उस पर सिंगरफ की टिकिया रख ऊपर से और 100gm अपामार्ग की राख डालकर हाथ से अच्छी तरह दबा दे। फिर हांडी पर ढक्कन लगाकर अच्छी तरह से कपडमिट्टी कर के सुखा लें। उसके पश्चात 10 किलो गोबर के उपले कि आंच मे हांडी को रखकर फूंक दे। जब राख ठंडी हो जाए तब निकाल ले। सिंगरफ कि इस भस्म को एक रत्ती प्रमाण में देने से काम शक्ति बढ़ती है।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) से तैयार सोमल भस्म। Somal Bhasma prepared from Apamarga (Ulata kanta)
20gm संखिया लेकर एक शीशी में डालकर उसमें इतना आंख का दूध डालें कि वह डूब जाए। फिर 21 दिन तक उसे भूमि के अंदर गाड़ रखें। फिर एक मिट्टी की हांडी में अपामार्ग की राख को हांडी के आधे हिस्से तक भरकर उस पर संखिया की टिकड़ी रख और उसके ऊपर फिर मुंह तक अपामार्ग की राख भर दे। उसके पश्चात उसे तीनपहर तक हल्की आंच और तीन पहर तक मध्यम आंच और तीन पहर तक तेज आज देने से संखिया की सफेद रंग की भस्म तैयार होती है। इस भस्म की परीक्षा के लिए इसे थोड़ी सी आग के ऊपर डालना चाहिए अगर उसमें से धुआ ना निकले तो समझना चाहिए कि भस्म शुद्ध हो गई है। इस भस्म को चौथाई चावल के बराबर देने से श्वास रोग में बहुत फायदा होता है।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) से तैयार हड़ताल भस्म। Hadtal Bhasama with apamarga (Ulta Kanta)
शुद्ध हड़ताल 10gm और 10gm अभ्रक दोनों को खरल में डालकर अपामार्ग के पानी में चार पहर तक खरल करके उसकी टिकड़ी बांधकर छाया में सुखाना चाहिए। फिर उस टिकड़ी को मिट्टी की एक छोटी हांडी में अपामार्ग की राख को आधे हिस्से तक दबाकर भर कर उस पर रख देना चाहिए। उसके पश्चात शेष हिस्से में भी अपामार्ग की राख को दबाकर भरकर ढक्कन लगाकर कपट मिट्टी कर 1 गज लंबे 1 गज चौड़े और 1 गज गहरे गड्ढे में उपले कंडे भरकर बीच में उस हांडी को रखकर फूंक दे। इस प्रकार गजपुट में तीन बार फुकने से अत्यंत उत्तम भस्म तैयार हो जाएगी। इस भस्म की खुराक आधी रति से लेकर 2 रत्ती तक की है। यह भस्म प्राचीन से प्राचीन बुखार के लिए रामबाण औषधि है। इसके बुखार, एकतरा, पाली आदि सभी विषम बुखार नष्ट हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त खांसी श्वास के अंदर भी यह अच्छा लाभ पहुंचाती है।
अपामार्ग (उल्टा कांटा) का अमृताख्य तैल। Amritakhya oil of apamarga (Ulta kanta)
अपामार्ग के बीज, सिरस के बीज, दोनों प्रकार की श्वेता (कटकी और महाकटकी) और मकोय इन सबको समान भाग लेकर गोमूत्र में पीसकर लुगदी कर ले। फिर 200 ग्राम लुगदी 2 किलो तिल का तेल और 2 किलो गोमूत्र डालकर हल्की आंच पर चढ़ावे। जब तेल मात्र शेष रह जाए तब उतारकर छांन ले।
महर्षी सुश्रुत ने इस तेल को महाविषनाशक बतलाया है।
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