कोलीकांदा (जंगली प्याज़) / Kolikanda (Jangli Pyaj) / Urginea Indica / Wild Onion
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jangli pyaj ka podha / Urginea Plant |
कोलीकांदा (जंगली प्याज़) के अन्य भाषाओं में नाम / Names of KoliKanda (Jangli onions) in other languages
संस्कृत - कोलकन्द (Kolikand), कृमिध्न (Krimidhn), पंजाला (Panjala), पटेलू (Patelu), पुतकन्द (Putkanda), सपुत (Saput)।
हिन्दी - कोलिकन्दा (Kolikanda), जंगली कांदा (Jangli Kanda), जंगली प्याज़ (Jangli Pyaj)।
गुजराती - जंगली कांदा (Jangli Kanda), रानकांदो (Rankando)।
बंगाल - बनप्याज (Banpyaj), जंगली प्याज़ (Jangli Pyaj)।
मराठी - जंगली प्याज़ (Jangli Pyaj), जंगली कांदा (Jangli Kanda)।
कश्मीर - पुटालू (Putalu)।
कुमाऊं - घेसुआ (Ghesuaa)।
सीमा प्रांत - इरिकल (Erikal), कुन्दा (Kunda), कन्द्री (Kandri)।
अरबी - असले-हिन्द (Asle Hind), बल्लुल फेर हिन्द (Ballul fer Hind), इस्किले हिन्दी (Eshkile Hind)।
लेटिन - Urginea Indica (आर्जीनीया इण्डिका)
English - Wild Onion
कोलीकांदा (जंगली प्याज) की पहचान / Kolikanda (Jangli Pyaj) Ki Pahchan / Identification of Kolikanda (wild onion)
इस वनस्पति का कंद देखने में प्याज की तरह होता है। इसका पौधा भी करीब-करीब वैसा ही होता है। मगर इसमें और उसमें बहुत फर्क है। यह वनस्पति समुंद्र के किनारे की खारी जमीनों में और पहाड़ी जमीनों पर प्राय सब दूर पैदा होती है। इसका कंद औषधि के रूप में काम आता है और 1 वर्ष से कम उम्र का ही पौधा ज्यादा लाभदायक होता है। पुराना कंद नि:सत्व हो जाता है।
कोलीकांदा (जंगली प्याज) के गुण दोष और प्रभाव / Kolikanda ke Gun-Dosh / Properties, Defects and Effects of Coliconda (Wild Onion)
आयुर्वेदिक मत से कोलीकन्द चरपरा, गरम, कृमि रोग नाशक व वमन को दूर करने वाला और विष के विकारों को नष्ट करने वाला होता है।
यह विरेचक पेट दर्द को दूर करने वाला, ऋतुश्रावनियामक और लकवा, ब्रोंकाइटिस, दमा, जलोदर, गठिया, चर्म रोग, सिर दर्द, नाक के रोग इत्यादि रोगों में लाभदायक है।
इसके कंद का उपयोग जीर्ण वायु नदियों के प्रदाह में व नाक के बहने पर शरबत के रूप में आउटपेशेंट (बीमारों) को दिया गया। वह इन दोनों ही रोगों में उपयोगी पाया गया।
शोधकर्ताओं ने सन 1926 में जो प्रयत्न किए हैं उन से पता चलता है कि यह वस्तु यूनाइटेड स्टेट्स में पाई जाने वाली Urginea Miritima से व इंग्लैंड में पाए जाने वाली U.Seilla से किसी कदर कम नहीं है।
यह हृदय को उत्तेजना देने वाली और मूत्रल औषधि है।
इस औषधि की क्रिया हृदय पर बिल्कुल डीजीटेलिस के समान होती है। यह छोटी मात्रा में पसीना लाने वाली है, मूत्र विरेचन करती है, कफ को नाश करती है और हृदय को ताकत देती है।
बड़ी मात्रा में यह वमन अर्थात उल्टी और दस्त लाती है तथा आमाशय और अंतड़ियों में दाह भी पैदा करती है और अधिक मात्रा में लेने से यह दस्त और उल्टी लगाकर प्राण नाश करती है।
इसके अंदर के द्रव्य आंतो के द्वारा, मूत्र पिंड के द्वारा और फेफड़ों के द्वारा बाहर निकलते हैं। आंतों से बाहर निकलते समय यह मल को पतला कर देते हैं। मूत्र पिंड से बाहर निकलते समय यह मूत्र के प्रमाण को बढ़ा देते हैं और फेफड़े द्वारा बाहर निकलते समय यह कफ को पतला कर देते हैं।
यह वनस्पति डिजीटेलिस की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली, मूत्र निस्सारक और पाचन नली में दाह (जलन) करने वाली होती है। डिजीटेलिस में कफ नाशक धर्म नहीं होता मगर कोलीकांदा में कफ नाशक धर्म रहता है। कोलीकांदा से हृदय को बल मिलता है उसके ठोके साफ हो जाते हैं और वह शांति गति से चलने लगता है। हृदय का अनुसरण नाडी भी करती है और यह भी शांति गति से स्थिरता के साथ चलने लगती है। इसकी मात्रा आधी रत्ती से एक रत्ती तक है।
जिन जिन स्थानों पर डिजीटेलिस का व्यवहार किया जाता है। उन-उन स्थानों पर इस औषधि का प्रयोग करने में यथेष्ट लाभ होता है। खासकर के फेफड़ों के रोगों पर इसका विशेष रूप में प्रयोग में किया जाता है। जब कफ अधिक और चिकना होकर जम जाता है तब इसको देने से यह उसको निकाल देता है। श्वास नली की जीर्ण सूजन में यह बहुत लाभ पहुंचाता है। पुराने कफ रोग में इसको देने से तीन प्रकार का लाभ होता है:-
(१) एक जिनका जीर्ण कफ रोग की वजह से हृदय के अंदर हमेशा एक प्रकार की शिथिलता बनी रहती है, वह दूर हो जाती है।
(२) कफ छुटकर जल्दी बाहर निकलता है।
(३) अमाशय की ताकत बढ़कर भूख लगती है और अन्न का पाचन होकर दस्त साफ होती है।
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jangli pyaj flower / Urginea indica flower |
यह औषधि नवीन कफ रोगों में नहीं देना चाहिए। इपिकाक की अपेक्षा यह विशेष दाहजनक होती है, इसलिए इसे वमन कराने के लिए कभी नहीं देना चाहिए।
मूत्र का परिणाम बढ़ाने के लिए इसको अकेले न देकर दूसरी औषधियों के साथ देना चाहिए। हृदयोदर रोग में इसका विशेष उपयोग किया जाता है और इस कार्य में यह विशेषकर पारा और डिजीटेलिस के साथ दी जाती है। हृदय की शिथिलता को दूर करने के लिए इसे डिजीटेलिस के बदले में दिया जाता है और कभी-कभी डिजीटेलिस के साथ मिलाकर भी दिया जाता है। हृदय की शिथिलता में - फिर वह चाहे बुखार की वजह से हुई हो, हृदय के रोगों से हुई हो, मूत्रपिंडो के रोगों से नाड़ी कठिन हो जाने की वजह से हुई हो अथवा पांडुरोग या और किसी कारण से हुई हो, इसको छोटी मात्रा में देने से बड़ा लाभ होता है।
कोलीकांदा के फायदे व उपयोग / Kolikanda (Jangli Pyaj) Ke Fayde / Advantages and Uses of Coliconda
मूत्रावरोध / Diuresis and jangli pyaj
नींबू के समान आकार के कोलीकांदे को 5 से 10 रत्ती तक की मात्रा में देने से मूत्र वृद्धि होती है और रुक रुक कर पेशाब आना जैसी समस्या नष्ट होती है।
गठिया / Arthritis and Jangli Pyaj
कोलीकांदे को कूटकर पुल्टिस बनाकर बांधने से गठिया और चोट की सूजन उतरती है।
कोलीकंद उषक वटिका / koleekand ushak vatika
कोलीकांदा 25 भाग, बच्छ 20 भाग, ऊषक गोंद 20 भाग और शहद 20 भाग। इन सब औषधियों को मिलाकर 2 से 4 रत्ती तक की गोलियां बना लेना चाहिए। ऊपर जिन जिन रोगो में कोलीकंदा के लाभ बताए गए हैं। उनमें इसको देने से भी वही लाभ होता है।
कोलीकांदा का सिरका / Kolikanda ka Sirka
कोलीकंद एक भाग को उसके चौगुनी सिरके में मिलाकर उपयोग करना चाहिए।
अर्क कोलीकांदा / Ark Kolikanda
कोलीकांदा को 5 गुणा रेक्टिफाइड स्पिरिट में 8 दिन तक भिगोना चाहिए। उसके बाद 5 से लेकर 15 बूंद तक की मात्रा में इसका उपयोग करना चाहिए। इससे भी वही लाभ होते हैं जिनका ऊपर वर्णन किया गया है।
कोलीकांदा अवलेह / Kolikanda Avleh
कोलीकांदा 2 तोला, आंकड़े की जड़ का चूर्ण 1 तोला, अफीम 7 ग्राम, सेंधा नमक 4 तोला, उषक गोंद 2 तोला।
इन सब चीजों को कूट पीसकर इनके कुल वजन से तीगुने शहद में मिला देना चाहिए। इसको एक ग्राम की मात्रा में देने से भी उपरोक्त वर्णित सब रोगों में लाभ होता है।
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