इमली / Imli / Tamarind / Tamarindus Indicis
इमली का पेड / Imli Ka Ped |
इमली के अन्य भाषाओं में नाम — Names of tamarind in other languages
संस्कृत— अम्लिका (amlika), अम्ली (amli), अत्यम्ला (atyamla), भुक्ता (Bhukta), चरित्रा (chritra) चिञ्चा (Chicha), चिञ्चिका (Chichika), चुक्रा (chukra), दन्तशठा (Dantsatha), गुरुपत्रा (guruptra), सर्वाम्ला (Sarvamla), तिन्तिडिका (Tintudika), यमदूतिका (Yamdutika) ।
हिंदी— इमली (Imli)।
बङ्गाली— तेंतलू (Tentlu)।
मराठी— चित (Chit)।
गुजराती— अम्बरीष (Ambrees)।
तेलंगी— चितचेटू (Chitchetu)।
तामील— पुलि Puli)।
फारसी— खुर्माये हिंदी (Khurmaye Hindi), तमरे हिंदी (Tamre Hindi)।
लैटिन— Tamarindus Indicus ( टेमरिन्डस इन्डिकस )
इमली के पेड़ का वर्णन — Description of Tamarind Tree
इमली के वृक्ष प्रायः सब ओर होते हैं और सब लोग इनको जानते हैं। इसलिये इसके विशेष परिचय की आवश्यकता नहीं।
इमली के गुण, दोष और प्रभाव — Tamarind properties, drawbacks and effects
आयुर्वेदिक मत— आयुर्वेदिक मत से कच्ची इमली भारी, वातनाशक पित्त-जनक, कफकारक और रक्त को दूषित करने वाली है। पक्की इमली-दीपन, रूखी, किञ्चित् दस्तावर और गरमी, कफ तथा वात को नाश करने वाली है।
इमली का वृक्ष भारी, गरम, खट्टा,पित्तजनक, कफ पैदा करने वाला, रक्त को दूषित करने वाला और वातविनाशक है। इसके फूल कशेले, स्वादिष्ट खट्टे, रूचीकारक, अग्निदीपक, हल्के तथा वात, कफ और प्रमेह को नाश करने वाले है। इसके पत्ते सूजन और रक्तविकार को दूर करने वाले हैं। कच्ची इमली-खट्टी, अग्निदीपक, मलरोधक,र् गरम तथा रक्त-पित्त और रक्त को कुपित करने वाली है। पकी हुई इमली मधुर, सारक, खट्टी, हृदय को बल देने वाली, दीपन, रुचिकर, वस्तिशोधक और कृमि नाश करने वाली है। इसका रस मधुर, मीठा, खट्टा, रुचिकारक, व्रणविनाशक तथा सूजन और पक्तिशूल को नष्ट करने वाला है।
इस वृक्ष की छाल पक्षघात रोग में उपयोगी है। चेतनहीन अङ्गों पर इसे लगाने के काम में लेते हैं। इसकी छाल की राख सुजाक और मूत्रसम्बन्धी बीमारियों में देने के काम में ली जाती है। इसके पत्ते कर्णरोग, नेत्ररोग, सर्पदंश और बड़ी माता के अन्दर उपयोग में लिये जाते हैं। इसका कच्चा फल ऑंतों के लिये संकोचक, वातनिवारक और रक्त को दूषित करने वाला है। इसका पका फल घावों को तथा हड्डि की मोच को दूर करने वाला है। इसके बीज फोड़े, फुंसी और प्रसवद्वार-सम्बन्धी तकलीफों के लिए लाभदायक है।
इमली में कुछ शक्कर, ऐसेटिक साइट्रिक, टाॅरटेरिक ऐसेडि्स और पोटाश का सम्मेलन रहता है। इसमें ऐसा कोई भी तत्व नहीं दिखलाई देता, जिसमें इसमें विरेचक गुण पाया जाए। भारतीय लोग इस वृक्ष के अम्ल निस्सरणों को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक समझते हैं। ऐसा कहा जाता है कि इमली के वृक्ष के नीचे तंबू के कपड़े को बहुत दिन तक रखने से उसका कपड़ा सड़ जाता है। यह भी कहा जाता है कि इसके वृक्ष के नीचे दूसरे पौधे नहीं उगते। मगर ऐसा मालूम होता है कि यह नियम सर्वव्यापक नहीं है। क्योंकि हमने इस वृक्ष की छाया में चिरायता या दूसरे प्रकार के छाया-प्रेमी पौधों को परवरिश पाते देखा है।
इमली के बारे में अन्य मत व उपयोग -- Other opinions and uses about Tamarind
मखजनूल अदविया के मतानुसार यह हृदय को बल देने वाली, साफ दस्त लाने वाली, पित्त की वमन को रोकनेवासी तथा मृदु-रेचक के द्वारा शरीर को शुद्ध करने वाली है। गले के घाव में इमली के पानी से कुल्ले करने से बड़ा लाभ होता है। आंख के रोगों पर इसके फूलों का पुल्टिस बांधने से लाभ होता है। खूनी बवासीर के अन्दर भी इसके फूलों का रस लाभदायक है। इसके बीजों को उबालकर विस्फोटक के समान फोड़ों पर पुल्टिस बांधने से लाभ होता है।
एक यूनानी लेखक के मत से यह हृदय और आमाशय को बल देने वाली, मूर्च्छा को दूर करने वाली, सिर-दर्द में लाभ पहुंचाने वाली और संक्रामक रोगों को दूर करने वालीं है। इसके बीज संग्राही और वीर्य-स्तम्भक है। इसका पका फल ज्वर में शान्ति देने वाला, पेट के आफरे को दूर करने वाला और मृदु विरेचक है। शरीर की जलन में तथा नशीले पदार्थों के असर में भी यह लाभ पहुॅंचाता है।
मेडागास्कर में इसका हर एक हिस्सा औषधि के प्रयोग में लिया जाता है। इसकी छाल को श्वास की बीमारी में लाभदायक समझते हैं। इसके पत्तों का सत्त्व कृमिनाशक औषधि के रूप में काम में लिया जाता है। यह पेट की तकलीफों में भी उपयोगी है।
गायना मैं इसके पत्तों को पानी में उबालकर, उस उबले हुए पानी को घाव धोने के काम में लिया जाता है। इसके सूखे पत्तों का चूर्ण खराब घावों पर लगाने के काम में लिया जाता है। इस के ताजे पत्तों की पुल्टिस सूजन और मोच के ऊपर बांधी जाती है। इस फल का गूदा ज्वर और मन्दाग्नि में उपयोगी समभा जाता है।
कम्बोडिया में इसकी छाल अतिसार रोग में व मसूड़ों की सूजन में संकोचक औषधि की तरह काम में ली जाती है। यह पौस्टिक भी मानी जाती है।
सीलोन के अन्दर यकृत और प्लीहा में गाॅंठ होने के की बीमारी में इमली के फूल को एक प्रकार की मिठाई बनाकर रोगी को देते हैं।
इण्डियन मैटेलिका मटेरिया मेडिका के मतानुसार इसकी पत्तियों के स्वरस को लाल किए हुए लोहे से छोंककर प्रवा-हिका रोग में देते हैं। इसकी छालको क्षार का पाचक रूप में आन्तरिक उपयोग होता है। इसका तरीका इस प्रकार है—इसकी छाल को सेंधे नमक के साथ एक मिट्टी के बर्तन में रखकर जला लें। जब उसकी सफेद राख हो जाय, तब उसे रख लेना चाहिये। इस राख को १ रत्ती की मात्रा में देने से अजीर्ण और उदरशूल रोग में बड़ा लाभ होता है।
डाॅ० आर० एन खोरी के मतानुसार पकी इमली का गूदा 'स्कव्र्ही रोग को नष्ट करने वाला और मृदु-विरेचक है। यह ज्वर, प्यास, सर्दी, गरमी और पित्त-प्रधान रोगों में व्यवहृत होता है। हमेशा की कब्जियत में इसका गूदा लाभदायक है चोट लगने के कारण यदि किसी अङ्ग में सूजन आ गई हो तो कच्ची इमली के पत्तों को पीसकर गरम कर सूजन पर लेप करने से लाभ होता है। इमली के बीज आमातिसार और रक्तातिसार में लाभ-दायक है।
इमली के फायदे — imli ke fayde -- benefits of tamarind
आमातिसार मैं इमली के प्रयोग—Uses of Tamarind
इसके पके हुए बीज के छिलके का चूर्ण ४ माशा, जीरा ३ माशा, मिश्री ६ माशे, इन सबको मिलाकर चूर्ण का चार माशे की मात्रा में तीन २ घण्टे के अन्दर पर देने से पुराना अतिसार मिटता है।
(2) एक वर्ष के इमली के पौधे की जड़ और काली मिर्चे दोनों बराबर लेकर मट्ठे के साथ पीसकर गोलियां बनाकर दिन में तीन बार देने से आमातिसार मिट जाता है।
वीर्य की कमजोरी मे इमली से फायदा— Benefits of tamarind in the weakness of semen
इमली के बीजों को रात में भिगोकर सबेरे उन्हें छीलकर, पीसकर बराबर का गुड़ मिलाकर छ: २ माशे की गोलियां बना लें। इसमें से एक २ गोली सबेरे शाम लेने से वीर्य की कमजोरी मिटकर पुरुषार्थ बढ़ता है, गरीबों के लिए यह वस्तु बहुत उपयोगी हैं।
लू लगना मे इस्तेमाल करें इमली— Use tamarind for heatstroke
पक्की हुई इमली के गूदे को हाथ और पैरों के तलबे पर मलने से लू का असर मिटता है।
इमली से ठीक करें हृदय की दाह—Heal heartburn with tamarind
मिश्री के साथ पकी हुई इमली का रस पिलाने से हृदय की सूजन मिटती है।
इमली से कब्जियत में राहत—Constipation relief with tamarind
पन्द्रह-बीस वर्ष की पुरानी इमली का शर्बत बनाकर पिलाने से पुरानी कब्जियत मिटती है, ऐसा कहा जाता है कि पुराने इमली पुरुषार्थ बढ़ाने के लिए अच्छी औषधि है।
शीतला रोग में इमली से फायदा— Benefits of tamarind in Sheetla disease
चक्रदत्त का मत है कि इमली के पत्ते और हलदी से तैयार किया हुआ ठण्डा पेय शीतला की बीमारी में बहुत मुफीद है।
इमली के अन्य उपयोग (१)
(२)
(३)
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इमली से तैयार औषधियां— medicines made from tamarind
क्षुदावर्द्धक पन्ना—इमली के फल का गूदा २।। तोला लेकर आधा सेर पानी में मसलकर छान लिया जाय, उसके बाद इसमें १ छटांक मिश्री, ३।।। माशे दालचीनी, ३।।। माशे लोंग और ३।।। माशे इलायची मिला दी जाय। शीतादिक रोगों के बाद की कमजोरी को मिटाने में और वातसम्बन्धी शिकायतों को दूर करने में यह शर्बत बहुत अच्छा है। यह क्षुधावर्द्धक भी है।
हलका विरेचन—इमली के फल का गूदा २।। तोला, खारक २।। तोला और दूध पाव भर, इन तीनों को उबालकर, छानकर पीने से हलका जुलाब लगता है।
ऐसा कहा जाता है कि इमली की छाया में सोने से मनुष्य का शरीर ऐंठ जाता है।
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