अम्बाड़ा / AMBADA / AMBARA / SPONDIAS MOMBIN
अम्बाडा की पहचान - AMBADA KI PEHCHAN - IDENTITY OF AMBADA
यह एक प्रकार का जंगली आम है । हिमालय की तलहटियों में, चिनाव पूर्व में तीन हजार फीट की ऊंचाई तक तथा ब्रह्मा, अंडमान व हांग कांग में यह पैदा होता है ।
अम्बाडा के अन्य भाषाओं में नाम - Names in other languages of Ambada
संस्कृत - आभ्रातक (Abhratak)।
हिन्दी - अम्बाड़ा (Ambada)।
बंगाली - आमड़ा (Amda)।
मराठी - अम्बाड़ा (Ambada)।
कर्नाटकी - अंबोडेयकायि (Anbodeykayi)।
तैलंगी - आमाटस (Aamatas)।
गुजराती - अभेड़ा (Abheda)।
अंग्रेजी - सोन्डियास मिनट (Spondias mombin) |
लेटिन - स्पोंडिआस में गिफेरा ( Spondias Mangifera )।
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Ambada Fruit / Ambara ka fal |
अम्बाडा के गुण, दोष और प्रभाव - The merits, demerits and effects of Ambada
आयुर्वेद के मतानुसार कच्चा आमड़ा खट्टा, वातनाशक, खारी, गरम, रुचिकारी और दस्तावर है। पक्का आमड़ा कसैला, सुस्वादु, शीतल, तृप्तिकारी, कफवर्द्धक, पुष्टिकर, भारी, बलकारी तथा वात, पित्त, क्षत, दाह, क्षय और रुधिर विकार को दूर करने वाला है।
इसके पत्ते स्वादयुक्त, भूख बढ़ाने वाले और संकोचक हैं। इसका कच्चा फल खट्टा, अपच और वातनाशक होता है, यह रक्तवर्द्धक और गले के रोगों में लाभ पहुँचाने वाला है।
इसका पक्का फल तिक्त, मृदु, रसयुक्त व स्वादिष्ट होता है । यह शांतिदायक, पौष्टिक, कोमोद्दीपक और अंतड़ियों का संकोचन करने वाला होता है । वात, पित, फोड़े, जलन, क्षय और रक्त सम्बन्धी शिकायतों को यह नष्ट करता है। इसकी छाल सर्प विष निवारक कई औषधियों का एक अङ्ग हैं; तथा यह ज्वर, तृषा व पेचिश में उपयोगी पाई गई है ।
यह दूसरे दर्जे में शीतल व रूक्ष है पित्तप्रधान रोगों में यह लाभ पहुँचाता है । नाक के रोग में इसकी छाल पीसकर बकरी के तुरन्त दुहे हुये दूध के साथ पिलाने से लाभ पहुँचाती है।
डाक्टर चोपड़ा के मतानुसार यह संकोचक, सुगन्धित व शान्तिदायक पदार्थ है । इसका उपयोग पेचिश की बीमारी में लिया जाता है ।
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Ambada / Ambara |
अंबाडा के लाभ - Benefits of Ambada
👉अम्बाड़े के कोमल फलों के १ तोले रस को पांच तोले खड़ी शक्कर में मिलाकर सात दिन तक दोनों टाइम देने से अम्लपित्त में फायदा होता है ।
👉इसके पत्तों का रस कान में टपकाने से व बाहर भी लगाने से कर्णशूल में लाभ होता है ।
👉विष में बुझे हुये अस्त्र के घाव पर इसके फल को पीसकर लगाने से तथा सूखे व गीले फल को खिलाने से लाभ होता है ।
👉इसके पत्तों के चूर्ण तथा इसकी छाल के काढ़े को देने से आमातिसार में लाभ होता है।
इनसाइक्लोपीडिया गुंडेरिका के मतानुसार मुंडा जाति के लोग इनकी छाल को पानो के साथ पीसकर गठिया रोग पर इस्तेमाल करते हैं। यह पैत्तिक संधिवात में उपयोगी है । इसकी करीब १ छटांक छाल आधा सेर पानी में डालकर उबाली जाती है और उसमें से सत्व निकालकर अतिसार व रक्तातिसार की बीमारी में दिया जाता है । इसके पत्तों का रस कान के रोगों को भी लाभदायक बताया जाता है ।
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