तेलिया कन्द की दुर्लभ जानकारी और फायदे। Teliya Kand Ke Fayde, Teliya Kand Plant, TeliyaKand Jadi-Buti

तेलिया कंद के फायदे  - teliyakand ke phaayade

तेलिया कंद कहां मिलेगा -  teliyakand kahaan milega

तेलियाकंद इमेज  -  teliyakand imej

तेलियाकंद का पौधा दिखाएं  - teliyakand ka paudha dikhaen

तेलियाकंद मंत्र  -  teliyakand mantr

तेलियाकंद के बारे में कोई नई अपडेट बताओ -  teliyakand ke baare mein koee naee apadet batao

तेलियाकंद का तेल - teliyakand ka tel

नर तेलिया कंद पौधे के बीज ? - nar teliyakand paudhe ke beej ?

तेलिया कंद से सोना कैसे बनता है - teliyakand se sona kaise banata hai.



TeliyaKand se Milta-Jhulta




तेलिया कन्द के अन्य भाषाओं में नाम - Names of TeliaKand in other languages

संस्कृत–तेल कन्द | 
हिन्दी – तेल कन्द, तेलिया कन्द । 
बंगाल – तेल कन्द 
मराठी—–तेल कन्द ।
इंग्लिश में या लैट्रिन में अभी तक यह साबित नहीं हो पाया है कि वास्तविक तेलिया कंद कौन सा है।




तेलिया कन्द का वर्णन - Description of TeliaKand

पारे की गोली बाँधने वाली तथा ताम्बे को सोने के रूप में परिवर्तित कर देने वाली जो 64 दिव्य औषधिया आयुर्वेद में मानी गई है। उनमें तेलिया कन्द भी एक है। यह वनस्पति बहुत प्रभावशाली है। मगर आयुर्वेद के किसी प्रामाणिक ग्रन्थ में इस वनस्पति को पहचान के सम्बन्ध में कुछ मी वर्णन नहीं पाया जाता है। केवल राज निघण्टू में इस औषधि का परिचय देते हुए लिखा है कि तेलिया कन्द के पत्ते कनेर के पत्तों की तरह लम्बे, पतले और चिकने होते हैं। उनके उपर काले तिल के समान छिंटे पड़े रहते हैं । इस औषधि का कन्द बहुत बड़ा होता है।




तेलिया कन्द के गुण, दोष और प्रभाव - Properties, Defects and Effects of TeliaKand

आयुर्वेद के मतानुसार तेलिया कन्द लोहे को पतला करने वाला, चरपरा, गरम और वात, अपस्मार और विष को नष्ट करने वाला है। यह पारे को बाँध देता है तथा शरीर और धातुओं को सिद्ध करता है।




तेलिया कंद के बारे में विद्वानो की जानकारी - Scholar's information about TeliaKand

जंगल की जड़ी-बूटी के लेखक वैद्यशास्त्री शामलदास गौर लिखते हैं कि- Vaidyashastri Shamaldas Gaur, author of Herbs of the Junglee, writes that-

हमारी जगन्नाथ की यात्रा में एक परम तेजस्वी वृद्ध महात्मा के साथ हमारा परिचय हुआ। उनके साथ दिव्य औषधियों पर बात-चीत करते समय जब तेलिया कन्द का प्रसंग आया तब उन महात्मा ने कहा कि आबू, गिरनार, बिन्ध्याचल, हिमालय वगैरह पहाड़ों में तेलिया कन्द पैदा होते हैं। यह वनस्पति बहुत चमत्कारिक है और भाग्यशाली मनुष्यों के ही हाथ में यह आती है । 

मेरे हाथ में यह औषधि नहीं आई पर बाल्यावस्था में जब में अपने गुरु के साथ फिरता था तब एकबार बद्रीनारायण के रास्ते में एक पहाड़ पर मेरे गुरु की दृष्टि अकस्मात एक पौधे के ऊपर पड़ी। उसके पत्ते मूली के पत्तों से मिलते हुए परन्तु रंग में पीले थे और उनके ऊपर जैसे तेल चुपड़ा हुआ हो ऐसा दिखलाई देता था। यह पौधा ऊँचाई में करीब 2 फुट और घेराब में लगभग 21|| फुट था। इस सारे पौधे पर करीब 3 पत्ते थे। इस पौधे का पिण्ड़ मुठी में आ जाय इतना मोटा था। इस पिण्ड की छाल आम की छाल से मिलती हुई थी और इस पर पीले रंग के फूल जाये हुए थे। इस पौधे के नीचे की मिट्टी जैसे तेल में भींगी हुई हो ऐसी दिखलाई देती थी। 

मेरे गुरु उस पौधे को देखते ही एकाएक रुक गये और आश्चर्य भरी दृष्टि से उस पौधे को देखने लगे। कुछ देर बाद उन्होंने मुझे कहा कि बच्चा काम हो गया। ऐसा कह करके उन्होंने अपनी झोली में से 10 रुपये मुझे निकाल कर दिये और कहा कि पास ही गाँव से २ कुदाली और 1 बकरी खरीद कर ले आ। 

जब मैं दोनों चीजें लाया तब उन्होंने कुदाली से उस पौधे की आसपास की जमीन को खोदा जब उसके नीचे की गांठ दिखाई देने लगी तब खोदने का काम बन्द करके उस बकरी को एक रस्सी से उस पौधे के बांध दी और दोनों व्यक्ति एक झाड पर चढ़ गये। इधर बकरी उस बन्धन को छुड़ाने के लिये जोर से खींचतान करने लगी। जिससे वह पौधा कन्द के साथ उखड़ गया और उस कन्द के नीचे से फुंफकार मारता हुआ एक अत्यन्त भयंकर साँप भी निकल आया। 

यह साँप इतना क्रोधित हो रहा या कि बकरी उस कन्द को लेकर 20 हाथ भी नहीं पहुँची होगी कि इतने ही में उसने उसको पकड़ कर 10/12 जगह काट लिया। बकरी तो देखते २ प्राणहीन हो गई। मगर वह सर्प इतना क्रोधित था कि मरने के बाद भी उसको काटता रहा और जब तक बिलकुल हीनवीर्य नहीं हो गया तब तक उसे काटता रहा और अन्त में उस बकरी पर फन को पछाड़ते हुए खुद भी मर गया ।।

जब वह सर्प मर गया तब हम दोनों झाड़ पर से नीचे उतरे और उस कन्द को उठाया। इस कन्द का वजन करीब 4 किलो था और इसको दबाने से तेलिया रंग का लाल रस निकलता था । इस औषधि का किस प्रकार उपयोग किया जाता है इसको प्रकाशित करने की गुरुजी की आज्ञा नहीं होने से मैं इसको प्रकाशित नहीं कर सकता। फिर भी इतना कह सकता हूँ कि इस रस से पारे की गोली बाँधी जाती थी और उस गोली के संयोग से ताँबा और चाँदी के समान हलकी धातुएँ सोने के रूप में बदल जाती थी । 

इसके अतिरिक्त इस गोली को आधा घण्टे तक दूध में रख कर उस दूध की पीने से दुसाध्य नपुंसक को भी पुरुषार्थ प्राप्त हो जाता था। इसके सिवाय वायु, उन्माद, सूजन, जलोदर इत्यादि रोगों पर भी यह औषधि बहुत अच्छा काम करती थी।

सुप्रसिद्ध बनस्पतिशास्त्री रूपलालजी वैश्य का तेलिया कन्द के बारे वर्णन - Famous botanist Ruplalji Vaish's description of TeliaKand

सुप्रसिद्ध बनस्पतिशास्त्री रूपलालजी वैश्य ने बूटी दर्पण मासिक पत्र के सन् 1626 के अक्तूबर के अंक में लिखा था कि श्री भैय्यालाल पांडेय की तरफ से तेलिया कन्द के नाम से एक सारा पौधा मुझे मिला है। इस पौधे का चित्र भी इस अंक में दिया जा रहा है। चित्र से मालूम होता है कि इस पौधे के पत्ते चिकने तो हैं मगर ये कनेर के पत्तों की तरह नहीं हैं बल्कि सुरंग के पत्तों को तरह हैं। 
इसके पत्तों के ऊपर काले तिल के समान छीटे नहीं हैं। परन्तु डण्डी के ऊपर ऐसे छिंटे अवश्य हैं। इसका कन्द तेलिया रंग का और कुछ त्रिकोणाकार है। ऐसा कहा जाता है कि तेलिया कन्द का कन्द बहुत बड़ा होता है। मगर यह कन्द तो साधारण बालू के बराबर ही है। इससे ऐसा मालूम होता है कि यह पौधा बहुत छोटी उमर का है। भैय्यालाल पांडेय का कथन है कि इस पौधे को आसपास की भूमि हमेशा तेल में भींगी हुई रहती है और जहाँ से यह कन्द निकाला गया था उसके आसपास कोई दूसरा पौधा देखने में नहीं आया ।

अनुभूत योगमाला से प्राप्त तेलिया कन्द का वर्णन - Description of Telia Kand obtained from Anubhut Yogamala

सन् 1934 के अक्तूबर मास के अंक में इस कन्द का परिचय देते हुए लिखा था कि दक्षिण और मध्य भारत में एक ऐसा विचित्र कन्द पैदा होता है जो अत्यन्त दुर्गम पहाड़ी स्थानों पर होता है। जहाँ मनुष्य की पहुँच बहुत कठिनता से होती है। इस कन्द को तेलिया कन्द कहते हैं। इसमें से काले रंग की तेल की धार बहती रहती है। जो पृथ्वी और पत्थरों के ऊपर बहती हुई नजर आती है और उसी तेल की चिकनाई से यह पता चलता है कि इस जगह पर तेंलियाकन्द है।
वृद्ध लोगों का कथन है कि ताम्बे को अग्नि में गलाकर उसमें अगर तेलियाकन्द का रस डाल दिया जाय तो वह सोना हो जाता है। अगर कोई मनुष्य इस कन्द के रस का सेवन करे तो उसे कभी बुढ़ापा नहीं आता ।

तेलिया कन्द का सत्य - Truth of TeliaKand

इन सब बातों में सत्य का कितना अंश है, यह कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अभी तक यह वनस्पति, वनस्पतिशास्त्र के विद्वानों और जनसाधारण की जानकारी में नहीं आई है। फिर भी साधु-सन्तों के मुँह से इसके विषय में कई आश्चर्यजनक बातें सुनने में आती हैं। इसी प्रकार रस ग्रन्थों में भी इस बनस्पति के सम्बन्ध में कई आश्चर्यजनक बातें पाई जाती हैं। इससे मालूम होता है कि अवश्य ही यह चमत्कारिक वनस्पति है जो आधुनिक जन समाज के ज्ञान से छिपी हुई है। ऐसी दिव्य वनस्पति के सम्बन्ध में खोज करने का भार प्रत्येक वैद्य को महसूस करना चाहिये ।