आडू / Peach / Prunus Persica
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Aadu ka Ped | peach Plant |
आडू के पेड की पहचान | aadu ke Ped ki Pehchan | Peach Tree Identification
वास्तव में यह वृक्ष चीन का है। योरप और पश्चिमी एशिया में भी यह बोया जाता है । भारतवर्ष में हिमालय पहाड़, मनीपुर और उत्तरी वर्मा में यह वृक्ष होता है । यह एक छोटे कद का झाड़ होता है । इसके फूल हलके गुलाबी रंग के और फल खटमीठे और गुठलीदार होते हैं । इसकी गुठली पर रेखायें होती हैं । इसमें एक प्रकार का गोंद लगता है। इसकी जड़ की छाल रंगने के काम में आती है। इसकी गिरी में से एक प्रकार का तेल निकाला जाता है जो कड़वे बादाम के तेल की तरह होता है ।
आडू के अन्य भाषाओं में नाम | Aadu Ke Naam | Name of peach in other languages
संस्कृत — आरुक (Aaruk)।
हिन्दी - आडू (Aadu)।
बंगाली - पीच (Peach)।
अरबी – खुज (Khuj), परसिक (Parseek)।
पंजाब – आरु (Aaru)।
फारसी - शफ्तालू (Saftaalu)।
उर्दू – अदूद (Adud)।
अंग्रेजी - Peach ( पीच ) ।
लेटिन - Prunus Persica ( प्रूनस परसिका )
आडू के गुण-दोष और प्रभाव | Aadu Ke Gun-Dosh | Benefits and effects of peaches
आयुर्वेदिक मत से आडू हृदय को बल देनेवाला तथा प्रमेह, बवासीर, गुल्म और रक्तदोष को नष्ट करनेवाला है।
आडू दूसरे दर्जे में सर्द और तर है। यह बात एवं कफ प्रकृति के लोगों को हानि पहुँचाने वाला और ज्वर पैदा करने वाला है। इसका प्रतिनिधि अमरूद और इसके दर्प को नाश करने वाले शहद और सोंठ हैं ।
इसके पत्ते कृमिनाशक और घाव को भरनेवाले होते हैं। ये धवल रोग और बवासीर में भी उपयोग में लिए जाते हैं । इसके फूल खून बढ़ाने वाले होते हैं। इसके फल कामोद्दीपक, मस्तिष्क को बल देने वाले और खून को बढ़ाने- वाले होते हैं । ये मुंह और कफ की दुर्गन्धि को दूर करते हैं। इसके बीजों का तेल गर्भस्रावक है। यह बवासीर, बहरापन, पेट की तकलीफ और कान के दर्द को मिटाता है।
आडू के फ़ायदे | Aadu Ke Fayde | benefits of peach
विरेचन — इसके फूलों का क्वाथ पिलाने से हल्का विरेचन होता है।
आमाशय का शूल - इसके फल के रस में अजवायन का चूर्ण मिलाकर पिलाने से आमाशय का शूल मिटता है ।
आंतों के कीड़े -- इसके फल के रस में थोड़ी सी सेंकी हुई हींग मिलाकर पिलाने से आंतों के कीड़े मरते हैं । बच्चों के पेट के कृमि - इसके पत्तों का रस पिलाने से बच्चों के पेट में पड़नेवाले कृमि (चुरने) नष्ट होते हैं।
कर्णशूल - इसके बीजों का तेल कान में डालने से कान के दर्द और बहरेपन में लाभ होता है।
चर्मरोग -- इसके बीजों के तेल की मालिश करने से चमड़े पर होनेवाली पीली फुन्सियाँ मिटती हैं इसका उपयोग करने के लिये प्रायः इसका ठण्डा काढ़ा (हिम ) और शर्बत ही उपयोग में लिया जाता है ।
पंजाब के निवासी इस फल को कृमिनाशक वस्तु की तरह उपयोग में लेते हैं ।
इण्डो-चाइना में इसकी छाल जलोदर रोग में लाभदायक समझी जाती है। इसके बीज कृमिनाशक और दुग्धवर्द्धक माने जाते हैं ।
यूरोप में इसकी छाल और पत्ते शान्तिदायक, मूत्रल और कफनिस्सारक माने जाते हैं। अंतड़ियों की जलन और पाकस्थली के दर्द पर भी यह बहुत मुफीद माना गया है। खाँसी, कुक्कुरखांसी और वायुनलियों के प्रदाह में भी यह दिया जाता है । ट्रांसवास में इसके पत्तों का शीतल वकाथ उन लड़कियों को देते हैं, जिनको बहुत समय तक मासिक स्राव नहीं होता ।
कर्नल चोपड़ा के मतानुसार इसके फूल विरेचक हैं और इसका फल अग्निवर्धक और शान्तिदायक है । इसमें प्रसिड नामक एक तत्व पाया जाता है । बेलफोर के मतानुसार इसका फल स्कह्वी रोग में लाभ पहुँचानेवाला, आमाशय को बल देनेवाला और पाचक है ।
इण्डियन मटेरिया मेडिका के मतानुसार इसका पका हुआ फल कोठे को मुलायम करनेवाला और लघुपाकी है। इसकी पत्तियों का काढ़ा पेट के कृमियों को नष्ट करनेवाला अवसादक है। एक अन्य यूनानी ग्रन्थकार के मतानुसार इसके पत्तों का स्वरस १ छटांक की मात्रा में पीने से तथा पेड़ पर पत्तों का लेप करने से पेट के कीड़े और केचुए निकल जाते हैं। इसके फूल और गुठली बवासीर में लाभदायक हैं।