शंखपुष्पी (शंखाहूली) के फायदे | Shankhpushpi Benefits In Hindi

 शंखपुष्पी / शंखाहूली [ श्यामक्रांता ] / Slender dwarf morning-glory / Evolvulus alsinoides

संस्कृत - मेध्या (Medhya), श्यामक्रांता चडा (Shyamkranta chadda), शंखपुष्पी (Sankhpuspi), शंखकुसुमा (Sankhkusma), पीतपुष्पी (PitPuspi), रक्तपुष्पिका (Raktpushpika), नीलपुष्पी (NeelPuspi), विष्णुक्रांता (Vishnukranta) इत्यादि ।   हिन्दी - शंखाहूली (Sankhahuli), शंखपुष्पी (Sankhpuspi), कौडियाला (Kodiyala), श्यामक्रांता (Shyamkranta) ।  गुजराती - शंखावली (Sankhavali)।  बंगाल - शंखा- हुली (sankha-Vali), डाकुनी (Dakuni)।  मराठी — शंखावड़ी (Sankhavadi)।   लेटिन -- Evolvulus alsinoides (इव्होलबूलस बल सीनाइडेस ) ।  English - Slender dwarf morning-glory


शंखपुष्पी का पौधा - Sankhpuspi Ka Paudha


शंखाहुली की छोटी छोटी बेलें जमीन के ऊपर फैली हुई रहती हैं। इसके पत्ते छोटे जो धूसर रंग के होते हैं। इसके फूल लाल, सफेद और नीले ३ रंग के होते हैं। ये फूल शख की आकृति के होते हैं। फूलों के रंग के भेद से शंखाहुली भी लाल, सफेद और नीली ३ प्रकार की होती है। इससे सारे पौधे पर सफेद या भूरे रंग का मुलायम रूआ रहता है।



शंखपुष्पी के अन्य भाषाओं में नाम - Shankhpushpi name in other languages


संस्कृत - मेध्या (Medhya), श्यामक्रांता चडा (Shyamkranta chadda), शंखपुष्पी (Sankhpuspi), शंखकुसुमा (Sankhkusma), पीतपुष्पी (PitPuspi), रक्तपुष्पिका (Raktpushpika), नीलपुष्पी (NeelPuspi), विष्णुक्रांता (Vishnukranta) इत्यादि । 

हिन्दी - शंखाहूली (Sankhahuli), शंखपुष्पी (Sankhpuspi), कौडियाला (Kodiyala), श्यामक्रांता (Shyamkranta) ।

गुजराती - शंखावली (Sankhavali)।

बंगाल - शंखा- हुली (sankha-Vali), डाकुनी (Dakuni)।

मराठी — शंखावड़ी (Sankhavadi)। 

लेटिन -- Evolvulus alsinoides (इव्होलबूलस बल सीनाइडेस ) ।

English - Slender dwarf morning-glory




शंखपुष्पी के गुण, दोष और प्रभाव - Properties, defects and effects of Shankhpushpi


आयुर्वेदिक मत से शंखाहुली, बुद्धिवर्द्धक आयुवर्द्धक, मानसिक रोगों को हटानेवाली, रसायन, कसेली, गरम, स्मरणशक्तिवर्द्धक, कांतिजनक, बलवर्द्धक, अग्निदीपक, चरवरी, सारक, शीतल, स्वर को उत्तम करनेवाली, मंगलकारक अवस्थास्थापक, पाचक तथा कोढ़, कृमि विष, पित्त, अपस्मार और सब प्रकार के उपद्रवों को दूर करनेवाली होती है । सब प्रकार की शंखाहूली गुणों में समान होती है ।


निघंटुरत्नाकर के मतानुसार सफेद शंखपुष्पी बुद्धिवर्द्धक, शीतल, वशीकरण, सिद्धिदायक, रसायन, सारक, स्वर को सुन्दर करने वाली, किचित् उष्ण, कसैली तथा स्मरण शक्ति, कांति और अग्नि को बढ़ानेवाली होती है । यह चरपरी, पाचक, अवस्थास्थापक, मङ्गलकारक तथा पित्त, विषदोष, मृगी, कफ, कृमि, विष, कोढ़, त्रिशेष, ग्रह- दोष और सब प्रकार के उपद्रवों को दूर करती है । लाल और नीली शंखाहुली के गुण भी इसी के समान ही होते है ।




शंखपुष्पी के फायदे - Sankhpushpi Ke Fayde - Benefits of Shankhpushpi



यह वनस्पति मस्तिष्क और स्मरणशक्ति को बल देनेवाली होती है :


शंखाहुली की प्रधान क्रिया मनुष्य के मस्तिष्क पर होती है । आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान में मनुष्य के मस्तिष्क को शक्ति देनेवाली जितनी वनस्पतियाँ बतलाई गई हैं उनमें ब्राह्मी, शंखाहुली और बच ये तीन सर्वप्रधान है । शंखाहुली मस्तिष्क को शक्ति देती है और उन्माद, मृगी, स्मरणशक्ति की कमजोरी, इत्यादि मस्तिष्क सम्बन्धी बीमारियों में लाभ पहुँचाती है । इसका स्वरस शहद और कूट के साथ देने से सब प्रकार के पागलपन में लाभ पहुँचाता है। इसके पञ्चांग की लुग्दी दूध के साथ देने से मस्तिष्क को शक्ति मिलती है बुद्धि में सुधार होता है और खाली पड़ा हुआ मस्तिष्क भर जाता है। सारक गुण होने की वजह से भी यह मस्तिष्क पर उत्तम असर पहुँचाती है । इसको थोड़े दिनों तक खाने से मनुष्य की स्मरणशक्ति बढ़ जाती है।




घरमपुर के वकील नरभेराम गोविन्दराम ने मधुप्रमेह के ऊपर इस वनस्पति का प्रयोग किया। वे अपने अनुभव से इस वनस्पति के सम्बन्ध में लिखते हैं कि-


'शंखाहुकी से नवजीवन प्राप्त होता है । यह शरीर के प्रत्येक तत्त्व को नया जीवन प्रदान करती है मस्तिष्क की भ्रमण, अशक्ति इत्यादि में यह बहुत लाभ करती है। मुझे एक साधु ने यह ओषधि बतलाई मैंने स्वयं इसका काफी अनुभव किया। प्रतिदिन सबेरे इसके पञ्चांग का आधा तोला चूर्ण गाय के मक्खन के साथ लेना चाहिये। यद्यपि इससे मेरा मधुप्रमेह दूर नहीं हुआ पर मेरी कमजोरी बिलकुल दूर हो गई और मुझे नया जीवन प्राप्त हुआ है ।



' बूटीप्रचार वैद्यक में लिखा है कि -

शंखाहुली शरीर के बहते हुये रक्त को रोकती है। उंगली या अंगूठा पक गया हो तो उसमें लाभ पहुँचाती है। दमा और पुरानी खाँसी पर इसके पत्तों की सीगरेट बनाकर पीने से लाभ होता है।



डाक्टर देसाई लिखते हैं कि -

शंखाहुली मस्तिष्क और मज्जातन्तुओं को बल देनेवाली, दीपन, अनुलोमक, ज्वरनाशक, पौष्टिक और गर्भाशय को शक्ति देनेवाली होती है। ज्वर के अन्दर अथवा ज्वर के बाद की कमजोरी को दूर करने के लिये पौष्टिक वस्तु की तरह इसका बहुत उपयोग किया जाता है। ज्वर में जब रोगी बेसुध हो जाता है और प्रलाप करने लगता है उस समय उसके मस्तिष्क को शक्ति देने के लिये और उसे नींद आने के लिये शंखाहुली की फांट बनाकर देते हैं अथवा शंखाहुली को जीरा और दूध के साथ पीसकर देते हैं। बच्चों के विषम ज्वर में इसकी जड़ दी जाती है । आंतो के रोगों में और विशेषकर आमातिसार में इससे पञ्चांग की फाट बनाकर दी जाती है। दमा और जीर्ण श्वासनलिका की सूजन में इसके पत्तों को चिलम में रखकर उनका धूम्रपान किया जाता है। रक्तस्राव को बन्द करने के लिये इसका स्वरस दिया जाता है।


डॉक्टर खोरी लिखते हैं कि -

शंखाहुली मृदुविरेचक, रक्तशोधक, रसायन और ज्ञानतंतुओं को बल देनेवाली होती है । इसका ताजा रस उन्माद, कमजोरी, कण्ठमाला और अजीर्ण वगैरह रोगों में दिया जाता है। डायमाक का कथन है कि वेदों के समय में शंखाहुली गर्भदाता मानी जाती थी परन्तु उसके बाद के समय में वह मस्तिष्क को शक्ति देनेवाली मानी जाती है।


ऐंसली के मतानुसार -

तामील लोग इसके पत्ते, डंठल और जड़ों का शीत निर्यास बनाकर चाय के आधे कप की मात्रा में दो बार अतिसार या पेचिश की बीमारी में आंतों के कुछ निश्चित रोगों को दूर करने के लिये देते हैं। यह एक बहुमूल्य औषधि मानी जाती है । 


सीलोन में इसका पौधा कटुपौष्टिक और ज्वरनाशक माना जाता है।


मेडागास्कर में इसकी जड़ प्रवाहिका रोग को दूर करनेवाली मानी जाती है। प्राचीन खाँसी और दमे के अन्दर इसकी सिगरेट बनाकर पीने से लाभ होता है ।


इसके चूर्ण की मात्रा ३ माशा और स्वरस की मात्रा २ तोले तक होती है ।




शंखपुष्पी चूर्णं - Sankhpushpi Churna - Shankhpushpi powder


शंखाहुली के पञ्चांग को छाया में सुखाकर उसका चूर्ण कर लेना चाहिए यह शंखाहुली का चूर्ण कहलाता है।


इस चूर्ण को तीन ग्राम की मात्रा में दूध के साथ लेना चाहिये। जङ्गलनी जड़ी बूटी के लेखक अपना निजी अनुभव बतलाते हुये लिखते हैं कि संस्कृत भाषा के कठिन विषय तथा अङ्गरेजी भाषा में मैट्रिक बी० ए० वगैरह का अभ्यास करनेवाले अनेक विद्यार्थियों को यह चूर्णं पेटेंट ओषधि की तरह दिया गया था । इन विद्यार्थियों का मगज जब पढ़ते-पढ़ते थक जाता था और अधिक पढ़ने में जब अपने को असमर्थं पाते तब एक ब्रेनटॉनिक की तरह इस चूर्ण को तीन माशे की मात्रा में वे दूध के साथ पी लेते थे जिससे उनके मस्तिष्क की सब थकावट उतर जाती थी । मस्तिष्क हलका हो जाता था और जैसे कुछ न पढ़ा हो ऐसे नवीन उत्साह से फिर से पढ़ते थे और उनको सभी प्रकार सब याद भी रहता था ।



शंखिनी चूर्ण - Sankhni Churna


गिलोय का सत्व, अपामार्ग की जड़, वायविडंग, शंखपुष्पी का पंचांग, कूट, वच, शतावरी और हरड़ इन सब चीजों को समान भाग लेकर चूर्ण कर लेना चाहिये। इस चूर्ण को प्रतिदिन सबेरे शाम तीन-तीन ग्राम की मात्रा में दूध के साथ लेने से थोड़े ही दिनों में मनुष्य की स्मरणशक्ति बहुत तीव्र हो जाती है।




बुद्धिवर्धक घृत - Buddhivardhak ghart


जटामांसी, कडु, बिदारीकंद; मुलहटी, चंदन, अमंतमूल, वच, हरड़, बहेड़ा, आँवला, सोंठ, मिरच, पीपर, हल्दी, दारूहल्दी, पटोलपत्र और सेंधानमक इन सब चीजों को समान भाग लेकर चूर्ण कर लेना चाहिये और उस चूर्ण को पानी के साथ चटनी की तरह पीसकर लुग्दी बना लेना चाहिये। फिर इस चूर्ण का जितना वजन हो उतना ही घी, उतना ही दूध और उस चूर्ण के वजन तिगुना शंखाहुली का रस मिलाकर हलकी औच पर पकाना चाहिये । जब दूध और शंखाहुली का रस जलकर घी मात्र शेष रह जाय तब उसको उतार कर छान लेना चाहिये ।


महर्षि वाग्भट लिखते हैं कि इस घी को एक से चार तोले तक की मात्रा में दूध के साथ लेने से मनुष्य दीर्घायु, उत्तम बुद्धिवाला, महान धारणा शक्तिवाला, कान्तियुक्त और प्रशस्त वाणीवाला होता है ।